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भूमिका
कर सकती है, और या कोई सभा व सोसायटी कर सकती है। यदि मेरी इस पुस्तक से अग्रवाल लोगों में अगरोहा की खुदाई कराकर अपने प्राचीन इतिहास की ठोस सामग्री प्राप्त करने की उत्कण्ठा उत्पन्न हो जाय, तो मैं अपने श्रम को सफल मानूंगा। ___इस इतिहास में एक और भारी कमी है। यह अग्रवाल जाति का केवल प्राचीन इतिहास है । मध्य तथा वर्तमान काल पर इसमें प्रकाश नहीं डाला गया । अग्रवालों में जो बहुत सी उपजातियां हैं, उनका विकास व भेद किस प्रकार हुवा, इसकी विवेचना मेंने नहीं की। यह विषय अपने आप में बड़े महत्व का है। इस पर बहुत खोज की आवश्यकता है । अग्रवालों में बहुत से भाइयों की उत्कट इच्छा है, कि इस सम्बन्ध में खोज की जाय और विविध उपजातियों के वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट किया जाय । मैं स्वयं इस कार्य की महत्ता को स्वीकार करता हूँ। यदि अवकाश मिला, तो मैं स्वयं इस कार्य को भी सम्पादित करने का प्रयत्न करूँगा।
इस पुस्तक के लिये सामग्री एकत्रित करने में मुझे बहुत से महानुभावों से सहायता प्राप्त हुई है । मेरठ के श्री पं० मंगलदेवजी, काशी के डा० मोतीचन्द जी एम० ए०, पी० एच० डी०, बाबू लक्ष्मीचन्द जी
और डा० मंगलदेव जी शास्त्री एम० ए० डी०, फिल, मुजफ्फरनगर के राय बहादुर लाला आनन्द स्वरूप जी साहब, मसूरी के कैप्टिन डा० रामचन्द्र जी रिटायर्ड सिविलसर्जन, पलवल के स्वर्गवासी लाला शिवलाल जी, भवानी के श्री लाला मेलाराम जी वैश्य और हिसार के श्री ब्रह्मानन्द ब्रह्मचारी आदि बहुत से महानुभावों ने मेरी इस कार्य में बड़ी सहायता की है । उन सब का मैं हृदय से धन्यवाद करता हूँ। ___ इस पुस्तक को लिखने में पेरिस यूनिवर्सिटी के विश्वविख्यात विद्वान श्री० फूशे, डा० ब्लाक और प्रो० रेनू से मुझे बहुत से महत्वपूर्ण निर्देश मिले हैं । इनका मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ।
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