________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२७
अग्रवालों के गोत्र कुक की सूचि पहली दो से बहुत भिन्न है। हमें यह ज्ञात नहीं, कि श्री० कुक ने किस आधार पर गोत्रों के नाम दिये हैं। जहां तक हमें शात है, अग्रवालों में प्रचलित गोत्रों के नाम वे ही हैं, जो श्री० शेरिंग व रिसले ने दिये हैं। इसमें सन्देह नहीं, कि एक ही गोत्र को भिन्न-भिन्न स्थानों पर कुछ उच्चारण भेद से बोला जाता है। जैसे एक ही गोत्र को कहीं बंसल, कहीं बांसल, कहीं बत्सिल, बात्सिल व बासल कहते हैं । अग्रवाल लोग उत्तरी भारत में दूर-दूर तक फैले हुवे हैं । स्थान भेद से उच्चारण में भेद आ जाना स्वभाविक ही है । पर कुक ने जो नाम दिये हैं, उनमें कौशिक, मैत्रैय, कश्यप आदि नाम अग्रवालों में कहीं प्रचलित हों, ऐसा हमारा विचार नहीं है । सम्भवतः किसी पण्डित ने प्रचलित गोत्रों के शुद्ध संस्कृत नाम ढूंढने का प्रयास किया होगा, और उसी के
आधार पर श्री० कुक ने उन्हें अपनी सूचि में दे दिया होगा। यह ध्यान रखना चाहिये, कि अग्रवालों में गोत्र जीवित जागृत हैं । वे अब तक केवल लोगों को स्मरण ही नहीं हैं, पर व्यावहारिक जीवन में उनका प्रतिदिन प्रयोग होता है । विशेषतया, सगाई विवाह आदि के निश्चय में तो उनके बिना कार्य चल ही नहीं सकता। अतः ऐसा ही प्रयत्न होना चाहिये, कि प्रचलित नामों को ही लिया जावे ।
प्रचलित गोत्रों का शुद्ध संस्कृत रूप ढूंढने का एक प्रयत्न अजमेर निवासी श्री रामचन्द्र ने किया था। उन्होंने अपनी छोटी सी पुस्तिका 'अग्रवाल-उत्पत्ति' में एक नक्शा दिया है, जिसमें न केवल गोत्रों के शुद्ध-रूप ही दिये हैं, पर साथ ही अग्रवालों के वेद, शाखा, सूत्र तथा प्रवर भी दिये हैं । इस नक्शे को यहां उद्धृत करना उपयोगी होगा
For Private and Personal Use Only