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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास १२२ प्राचीन राजवंशों का ऐतिहासिक रूप में वर्णन किया गया है । बहुत से ऐसे राजवंश जिनका पौराणिक साहित्य में कहीं उल्लेख नहीं, पर शिला लेखों, सिक्कों आदि से जिनकी सत्ता सिद्ध होती है, इस ग्रन्थ में वर्णित है यथा गुप्त, वर्धन, पाल आदि वंश । इसी पुस्तक में नागवंश का भी वृत्तान्त दिया गया है, और नागों को वैश्य या वैश्यनाग लिखा गया है।' मंजु-श्री-मूलकल्प का यह उल्लेख बहुत महत्व का है। कारण यह है कि राजा अग्रसेन का वंश भी वैश्य लिखा गया है, और इस पुस्तक से नागों का भी वैश्य होना सूचित होता है। __ श्रीयुत् काशीप्रसाद जायसवाल ने मंजुश्रीमूलकल्प के इन वैश्यनागों की भारशिव वंश से एकता सिद्ध की है। भारशिव राजाओं का परिचय हमें सिक्कों और कुछ अन्य ऐतिहासिक साधनों से मिलता है । भारशिव राजाओं ने कुशानों की शक्ति को उत्तरीय भारत से उच्छिन्न कर देश को स्वतन्त्र किया था । कुशान विजेता जो पश्चिम की ओर से भारत विजय करने के लिये आये थे, धीरे-धीरे सारे देश को जीत चुके थे। विम कैडफिसस और कनिष्क इनमें सबसे प्रतापी राजा हुवे । विदेशियों के शासन से भारतीय जनता पीड़ित थी । भारशिवों ने भारत को स्वतन्त्र किया और विदेशी कुशानों को उच्छिन्न कर दस अश्वमेध यज्ञ किये । बनारस का दशाश्वमेध घाट इन्हीं दश अश्वमेधों की स्मृति है। १. नागराज समाहृयो गौड राजा भविष्यति । अन्ते तस्य नृप तिष्ठं जयाद्यावर्णत द्विशौ ।। ७५० वैश्यैः परिवता वैश्यं नागाहृयो समन्ततः ।
मंजु श्रीमूल कल्प पृ० ५५, ५६
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