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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
का जो उल्लेख है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। इन भेदों के होते हुवे भी अग्रसेन की कथा सर्वत्र एक सी पाई जाती है और ऊपर जो कथा हमने दी है, उसे पर्याप्त अंश तक प्रामाणिक समझा जा सकता है।
अग्रवाल जाति में अग्रसेन का स्थान बहुत महत्व का है। अनेक घरों में उनकी प्रतिमा व चित्र की पूजा की जाती है । अग्रसेन की स्थिति एक देवता से कम नहीं समझी जाती। इस दैवी रूप ने राजा अग्रसेन की वास्तविक ऐतिहासिक स्थिति पर एक प्रकार का पर्दा सा डाल दिया है । राजा अग्रसेन एक "पृथक् वंशकर्ता' थे। उनसे एक नये वंश का, एक नये राज्य का प्रारम्भ हुवा था। प्राचीन भारत में बहुत से प्रतापी व महत्वाकांक्षी राजकुमार अपना अलग राज्य बनाकर नये वंश की स्थापना करते थे। महाभारत में ऐसे व्यक्तियों को 'पृथक वंशकर्तारः' कहा गया है। निःसंदेह राजा अग्रसेन इसी प्रकार के व्यक्ति थे । अगले अध्याय में हम उनके वंश का वर्णन करेंगे। उसमें हम दिखायेंगे, कि वे प्राचीन भारत के प्रसिद्ध राजवंश वैशालक वंश की एक छोटी राज-शाखा में उत्पन्न हुवे थे । पर उन्होंने अपने प्रताप से एक नया राज्य कायम किया । अपने नाम से एक नये नगर की स्थापना की और एक नये राजवंश का प्रारम्भ किया। उनके राज्य का नाम उन्हीं के नाम पर पड़ा और आग्रेय कहाया । अब तक भी इस राज्य के प्रतिनिधि उनके नाम से अग्रवाल कहाते हैं।
1. महाभारत, आदि पर्व ६७-२७५८
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