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आचा
॥८५८॥
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दशवकालिक सूत्रमा जे विषय कहेवानो बाकी रह्यो होय ते चुडामां कहेवाय-एवी बे चुडा दशवकालिकमा छे. अथवा उप६ कार अग्र ते आ आचार श्रुतस्कंधनी चुडानो विषय छे अने तेथी उपकार अग्रनुंज अहीं प्रयोजन छे, अने ते नियुक्तिकार कहे छे.
उक्यारेण उ पगयं आयारस्सेव उवरिमाई तु । रुक्खस्स य पचयस्स य जह अग्गाइं तहेयाई ॥२८६॥ आपणे अहींया उपकार अग्रथी अधिकार प्रयोजन] छे. कारण के आ चूडाओ आचाराङ्गमूत्रना उपर वर्ने छ, एटले आचाराना विषयनेज विशेष खुलासाथी कहेवा आ चूडाओ गोठवायेली छे,जेमके वृक्षने अग्र[टोच होय छे,तथा पहाडने टोच (शीखर)होय &छे अने बाकीना अग्रना निक्षेपार्नु वर्णन तो शिष्यनी मति खीलववा माटे छे तथा तेने लीधे उपकार अग्र मुखेथी समजी शकाय.कबुछेकेर
उच्चारिअस्स सरिसं, जं केणइ तं परूवए विहिणा । जेणऽहिगारो तमि उ, परूविए होइ मुहगेझं ॥१॥ ४ जे कहेवार्नु होय तेना जेवा पदार्थो विधिए कहेवाथी जेनावडे अधिकार छे तेमां पण बीजा सरखा पदार्थों सांभळवाथी कहे-18
वानो मुख्य पदार्थ पण मुखेथी ग्रहण कराय छे. तेमां हमणां आ कहेवू जोइए के आ चूलाओ [अग्रभागो] कोणे रची छे ? शा माटे ? अथवा क्याथी उद्धरी ते त्रणनो खुलासो करे छे:
पेरेहिऽणुग्गडट्ठा सीसहि होउ पागडत्थं च । आयारामओ अत्यो आयारंगेसु पविभत्तो ।। २८७ ॥ श्रुतज्ञाननापारंगामी वृद्ध पुरुषो जे चौद पूर्वी छे तेमणे आरची छे, तथा शिघ्यना उपर अनुग्रह लावीने के एओ सहेलथी समजे.
तथा अप्रकट (गुख) अर्थ खुल्लो थाय माटे आचारांग मूत्रमाथी आ बधा विषयोने विस्तारथी कह्यो छे. हवे जे अध्ययनमांधी जे अधिकार लीयो छे. ते विभाग पाडीने कहे छे,
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