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आचा०
॥८४९ ॥
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पुरुषोने जे ज्ञान छे, ते फळ देनारुं छे, पण क्रिया फळदायी नथी. कारण के मिथ्या ज्ञानवाळो क्रिया करवा जाय तो तेनुं अयोग्य फळ साक्षात् देखाय छे, अने सम्यग् प्रकारे ज्ञानथीज पार पहचाय छे, तथा विषय व्यवस्थितिनुं समाधान ज्ञान पूर्वक थाय छे, तथा बधा दुःखोनो नाश ज्ञानथीज थाय छे, अने ज्ञानतुंज अन्वयव्यतिरेकपणुं छे. एटले ज्ञान होय तो फळनी सिद्धि अने ज्ञान न होय तो फळनी असिद्धि छे; माटे दरेक रीते ज्ञाननुं प्रधानपशुं छे, ते बतावे छे. ज्ञानना अभावे अनर्थ दूर करवा माटे | तैयारी करे तो पण करवा जतां अज्ञानताथी पतंगीया माफक अनर्थमां झीपलाइ जाय छे, अने ज्ञानना सद्भावे बघा अर्थाने अने अनर्थना संशयाने विचारीने यथाशक्ति विनोने दूर करे छे, तेमज आगम पण कहे छे, “पढमं नाणं तओ दया" सूत्र छे. आ वधुं क्षायोपशमिकज्ञान आश्रयी कहूं, अने क्षायिकने आश्रयी पण तेज प्रधान छे, कारण के नमेला सुर असुर देवताना मुकुटोना समुदायोनी वेदिकामां जेमना चरण युगलनी पीठ छे, तथा भव समुद्रना तटे पहोंच्या छे.
तथा दीक्षा लीली छे, त्रण लोकना बंधु छे, तप चारित्र सारीरीते आदरवा छतां पण ज्यां सुधी जीव अजीव विगेरे बधा पदार्थोनुं परिच्छेद करनार घनघाति कर्म समूह क्षय थवारूप केवळ ज्ञान प्राप्त न थाय त्यां सुधी ते भगवानने मोक्ष प्राप्ति थती | नथी, माटे ज्ञानज युक्तिए युक्त आ लोक परलोक फळनी इच्छित प्राप्ति करनार सिद्ध थाय छे,
क्रिया वादीनो नय (अभिप्राय)
क्रियाज आलोक परलोकनुं इच्छित फळनी मासिनुं कारण छे. कारण के ते युक्तिए युक्त छे. जो तेम न होय तो ज्ञानवडे देखवा छतां पण अर्थ क्रियाना समर्थन अर्थमां ममाता मेक्षा पूर्वकारी छतां पण जो छोडवा लेवारूप प्रवृत्ति क्रिया न करे तो तेनुं
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सूत्रम्
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