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आचा
कोइ गृहस्थे साधुने पूछीने अथवा विना पूछे (छानु) आधा कर्मादि भोजन विगेरे कयु होय तो पोते ते लेता नथी.
सूत्रम् ___-शा माटे ? उ०-तेमणे जोयु के, ते लेवाथी बधी रीते आठे प्रकारना कर्मनो बंध थाय छे, तेवु दोषित बीजं पण | सेवता नथी, ते कहे छे, जे कंइ पापबाळु एटले जेनावडे भविष्यमां पापर्नु कारण थाय तेवू भगवाने न लीधुं, पण विकट (पासुका
निर्दोष) भोजन विगेरे लीधुं. (१८) वळीवाणो सेवइ य परवत्थं, परपाएवी से न भुञ्जित्था; परिवजि याण उमाणं, गच्छइ संखडिं असरणयाए ॥१९॥
मायण्णे असणपाणस्स, नाणुगिछे रसेसु अपडिन्ने; अच्छिपि नो पमजिजा, नोवि य कंडूयए मुणी गाय से पोते प्रधान (पर) वस्त्र भोगवता नथी. तेम किंमती पात्रमा खाता नथी, तथा पोते अपमान छोडीने आहारने माटे (ज्यां ।
आहार रंधाय तेवी रसोडानी जग्या) संखंडीमा कोइनु पण शरण (आलंबन ) लीधा विना अदीन मनवाळा 'आ मारो कल्प' छे| एम जाणीने परीपहो 'जीतवा' माटे जाय छे. (१९) ४ आहारनी मात्रा (माप) जाणे छे, माटे मात्रज्ञ प्रभु छे, प्र०-क्यो आहार? उ०-खवाय ते भात विगेरेनुं भोजन, पीवाय
ते पाणी, द्राखनुं धोवण विगेरे-तेमां पोते लोलूपी नथी, तेम रस [छवीगइ] मां गृहस्थपणामां पण लोलूपी नहोता, तो पछी दीक्षा 2
लीधा पछीजें तो कहेवू रस लेवाथी एम सूचव्यु, के पोते तेवा पदार्थमां अभिग्रह न धारे के आजे सिंह केसरीया लाडुज 8 दखावा ! पण आवी प्रतिज्ञा राखे के आजे कुल्मास अडदना बाकळा विगेरे खावा ; तथा आंखमां रज पडी होय, तो ते दूर करवा
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