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आचा०
॥८२६॥
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भगवाने बताव्यो ) (१५) वळी वे प्रकारवाळा ते द्विविध कर्म छे, इर्या प्रत्यय, अने सांपरायिक छे, ते बन्नेने पण सर्वज्ञ मभुए जाणीने संयम अनुष्ठानरूप जे कर्म छेदवाने माटे अन्यत्र नथी, तेवी अनन्य सदृशी क्रिया बतावी.
म० - भगवान केत्रा दता ? उ० – ज्ञानी, (केवळज्ञान प्राप्त थया पछी तेमणे आ क्रिया बतावी.)
प्र० - वळी तेमणे बीजुं शुं कां ? उ०- जेनावडे नवां कर्म लेवाय ते आदान खोडं ध्यान छे, तथा इंद्रियोना विकार संबंधी ते स्रोत छे. माटे जे आदान स्रोत छे, तेने जाणीने तथा जीव हिंसारूप तथा तेना लक्षणथी मृषावाद विगेरे पापोने तथा मन वचन कायाना व्यापारवा दुर्थ्यांन छे ते बधे प्रकारे कर्म बंधने माटे छे एम जाणीने तेमणे संयम लक्षणवाळी निर्दोष क्रिया बतावी. वळीअवत्तियं अणाउहिंसयमन्नेसिं अकरणयाए; जस्सित्थिओ परिन्नाया, सङ्घकम्मावहा उस अदक्खु ॥१७॥
आकुट्टी (हिंसा) ने त्यागवाथी अहिंसा छे, ते पापथी अति क्रांत होवाथी निर्दोष छे, ते महावीर प्रभुए पोतेज प्रथम अहिंसा स्वीकारीने बीजाओने पण हिंसानी प्रवृत्तिथी दूर राख्या, तथा जेमने स्त्रीओ स्वरूपथी तथा विपाकथी कडवां फळ आपनारी छे, एवं ज्ञान छे, ते परिज्ञात भगवान छे, तथा तेज स्त्रीओ सर्व कर्म समूहो एटले सर्व पापोना उपादान भूत छे. ते पण एमणे जोयुं छे, तेथीज तेओ संसारं रूप जाणनारा थया तेनो भावार्थ ए छे केः-स्त्रीना स्वभावना आवा परिज्ञानथी तथा ते जाणीने त्यागवाथीज भगवान परमार्थदर्शी थया छे मूळ गुणो बतावीने हवे उत्तर गुण प्रकट करवा कहे छे:| अहाकडं न से सेवे सब सो कम्म अदक्खु यं किंचि पावगं भगवं तं अकुवं वियड भुंजित्था ||१८||
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सूत्रम्
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