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योग रोके छे. पछी मूक्ष्म वचनयोग रोके छे. त्यार पछी मुक्ष्म काय योगने रोकतो अप्रतिपाति नामना शुक्लध्यानना श्रीजा आचा० भेदने आरोहे छे अने सूक्ष्म क्रियाने रोकतो विशेषे करीने क्रिया रोकीने अनिवृत्ति नामना शुक्लध्यानना चोथा पायाने आरोहे छे.
| अने तेमां आरुढ थयेलो अयोगी केवळी भावने पामेलो अन्तर्मुहर्त जघन्य उत्कृष्टथी रहे छे. तेमा जे जे कर्मनो उदय आवेल ॥८१५॥
| नथी ते ते कर्मोने स्थितिना क्षयवडे खपावतो अने वेदाति प्रकृतिने बीजी प्रकृतिमा संक्रमावतो खपावनो छेवटना पहेला समयमां आवे छे. ते बखते देवगति साथेनी कर्म प्रकृतिओ खपावे छे.
देवगति अनुपूर्वी वैक्रिय आहारक शरीर बन्नेनां अंगोपांग अने बन्धन अने सङ्घात तथा बीजी प्रकृति ओ खपावे छे औदारिक तेजस कर्मिण ए त्रण शरीर तेनां बन्धन अने सनातन छ संस्थान छ सङ्घयण औदारिक शरीरना अंगोपांग वर्ण गंध रस | फरस मनुष्य अनुपूर्वी अगुरु लघु उपघात पराघात उच्छवास प्रशस्त अप्रशस्त विहायोगति तथा अपर्याप्ति प्रत्येक स्थिर अस्थिर शुभ
अशुभ सुभग दुर्भग सुस्वर दुःस्वर अनादेय, अयशकीर्ति निर्माण नीचगोत्र कोइ पण एक वेदनीय कर्म खपावे छे. | अने छेल्ला समयमां तो १ मनुष्य गति २ पचेन्द्रिय जाति ३ त्रस ४ वादर ५पर्याप्त ६ सुभग ७ आदेय ८ मशः कीर्ति ९ तिर्थकर नाम १० कोइ एक वेदनीय कर्म ११ आयु १२ उच गोत्र ए बार प्रकृतिओ तीर्थङ्कर खपावे छे, अने कोइ आचाबने मते अनुपूर्वी सहित तेर प्रकृतिओ खपावे छे, अने तीर्थङ्कर न होय, ते प्रथम बतावेली बार अथवा अग्यार खपावे छे,
संपूर्ण कर्म क्षय कर्या पछी तुरतज अस्पर्श गतिए एकांतिक अत्यंतिक अनाबाध लक्षणवाळा सुखने अनुभवतो सिद्ध स्थान जे लो13 कना अग्र भागे छे, त्यां पहोंचे छे.
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