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| होय तेबा स्थानमां पण स्थंडिल न जचु, तेज प्रमाणे अंगारा पाळवानी जग्या, खारो तैयार करवानी जग्या अथवा मळदां वाळवानी आचा० | जग्या, ज्या मळदानां पगला होय, देरी होय. अथवा कबरो होय अथवा तेवा बीजा कोइ पण स्थानमा स्थंडिल न जवू, तथा सूत्रम्
जे जग्याए पाणी पवित्र मानी लोक नहाता होय तेबा लौकिक तीर्थ स्थानमां, तथा पकायतन ज्या माटी पवित्र मानी लोक आळो-2 ॥१०६५॥
18| टतां होय, भोपायतन एटले परंपराथी ज्यां लोको पवित्र स्थान मानता होय अथवा जे रस्तेथी तळावमा पाणीनी नीको होय त्यां||॥१०६७॥
स्थंडिल न जवू, तथा माटी खोदवानी नवी खाण होय, अथवा गायोनी पहेलो अथवा खवडाववान स्थान होय, अथवा बीजा खाणो होय त्यां स्थंडिल न जर्बु तथा डाग (पांदडांवाळ शारख,) तथा बीजा शाख तथा मूळा थवानी जग्यामां हत्थंकरनी जग्यामा स्थंडिल न जवू, तथा अशन वन शणन वन धावडोनुं वन केतकीनुं वन आंबानु, अशोकनुं नाग पुन्नाग चुलक विगेरेनुं वन होय, तथा पांदडां फूल फळ बीज भाजी विगेरेथी युक्त स्थान होय त्यां साधुए स्थंडिल न जवू
प्र० त्यारे केवी रीते स्थंडिल जg ? ते कहे छेसे मि० सयपाययं वा परपाययं वा गहाय से तमायाए एगतमवक्कमे अणाचार्यसि असंलोयसि अप्पपाणंसि जाव मकडासंताणयंसि अहारामंसि वा उवस्सयंसि तओ संजयामेव उच्चारपासवर्ण योसरिज्जा, से तमायाए एगंतमवकमे अणावाहं सि जाव संताणयसि अहारामंसि वा झामथंडिल्लंसि वा अन्नयरंसि वा तह. थंडिल्लंसि अचित्तंसि तओ संजयामेव उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा, एवं खलु तस्स० सया जइज्जासि (मू० १६७) त्तिवेभि । उच्चारपासवणसत्तिको सम्मत्तो ॥ ते साधु पोतान के कारण प्रसंगे बीजानु पात्रु ( तृपणी के तुंबडी पहोळा मोढानी) लइ जाय अने ज्या लोको न जुए अथवा |
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