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आचा०
॥ १०४४ ॥
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दवे खित्ते काले भावेऽवि य उग्गहो चउद्धा उ । देविंद १ रायउग्गह २ गिडबड़ ३ सागरिय ४ साहम्मी ।। ३१६ ।। द्रव्य अवग्रह क्षेत्र अवग्रह काळ अवग्रह अने भाव अवग्रह एम चार प्रकारनो अवग्रह है.
अवग्रहनुं वर्णन.
अथवा सामान्यथी पांच मकारनो अवग्रह ले.
(१) देवेंद्रो अवग्रह - ते लोकना मध्य भागमां रहेल मेरु पर्वतना रुचक प्रदेशथी दक्षिणना अर्ध भागमा रहेल जग्यानो. (२) राजा - ते चक्रवर्त्ती महाराजा के बादशाहनो भरत विगेरे क्षेत्र आश्रयी जे जग्या तेना वंशमां होय तेमां साधु विचरे ते. (३) गृहपति - ते गामडामा रहेनार महत्तर (पटेल) विगेरेनी पासे गामना महेल्ला विगेरेनो अवग्रह. (४) शय्यातर (घरघणी) नो तेनी खाली पडेली घघशाळा विगेरेमां ज्यां साधु उतरे छे, ते (५) साधर्मिक ते साधुओ जेओ मास कल्पवडे त्यां रह्या होय तेओनी पासे तेमनी मागेली जग्यामां उतरवुं ते वसति विगेरेना अवग्रह १। जोजन छे, ( बने दिशामां २॥ - २॥ गाउ जतां ) चारे दिशामां जाय, आ प्रमाणे पांच प्रकारनो अवग्रह वसति विगेरे लेतां यथावसरे अनुज्ञा लेवा योग्य छ. हवे प्रथम बतावेल द्रव्यादि अवग्रह बतावत्रा कहे ले
दग्गहो उ तिविहो सचित्ताचित्तमीस ओ चैव । खित्तु गोऽवि तिविडो दुविहो कालुग्गहो होइ ॥ ३१७ ।। द्रव्यनो अवग्रह ऋण प्रकारनो छे. शिष्य विगेरेनो सचित्त छे, रजोहरण विगेरेनो अचित्त अने शिष्य रजोहरण विगेरे साथे स्वीकारतां मिश्र अवग्रह छे, क्षेत्र अवग्रह पण सचित्त विगेरे त्रण प्रकारनोज छे, अथवा गाम नगर अरण्य भेदथी ऋण प्रकारनो छे,
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सूत्रम्
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