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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ९७९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से भिक्खू वा० समा गया सिज्जा भविज्जा विसमा वेगया सि० पवाया वे० निवाया वे० ससरक्खा वे० अप्पससक्खा बे० सदंसमसगा वेगया अप्पदंसमसगा० सपरिसाडा वे० अपरिसाडा० सउवसग्गा वे० निरुवसग्गा वे० तहष्पगाराहिं सिज्जाहिं संविजमाणाहिं पग्गहियतरागं विहारं विहरिज्जा न किंचिवि गिलाइज्जा, एवं खलु० जं सव्वद्वेहिं सहिए सया जएत्तिबेमि (मू० ११०) २-१-२-२ ।। ते साधुने संथारा माटे कोइ वखते सरखी कोइ वखते खरबचडी कोड़ बखते पवनवाळी कोई बखते हवा विनानी कोइ वखते धूळवाळी कोइ वखते विना धूळनी डांस मच्छरवाळी के डांस मच्छर विनानी अथवा रहेवाने उचित अथवा अनुचित उपसर्गवाळी के बिना भयनी एवी विचित्र जातिनी जग्या मळे तो पण तेमां समभाव धारण करीने रहे, पण ग्लानि के दीनताभाव के अहंकार लाववो नहि. आज साधुनुं सर्वस्त्र छे, माटे तेमां जयणाथी सदाए वर्ते. शय्या नामनुं बीजुं अध्ययन समाप्त थयुं. ईर्ष्या नामनुं श्रीजुं अध्ययन. बीजुं अध्ययन कहीने त्रीजुं कहे छे, तेनो का प्रमाणे संबंध छे, प्रथम अध्ययनमां धर्म शरीरनुं पालन करवा पिंड बताव्यो, ते पिंड आ लोक परलोकना अपायना रक्षण माटे अवश्ये वसति ( मकान )मां वापरवो, तेथी बीजा अध्ययनमां वसतिनुं स्वरूप For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ ९७९ ॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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