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काळ बतावनार ज्ञानी साधुना अभावे तेवू अणसण थतु नथी पण यथाशक्ति सागरिक एक बे उपवासर्नु अथवा कलाक वे कलाआचा० कनु अणसण वैयावच्च करनार मांदा साधुनी स्थिरता जोइ करावे छे. अने तेमां निमळ भावनी प्रधानता होवाथी पूर्वना मरण
मसूत्रम् जेबोज लाभ छे.] आ प्रमाणे सुधर्मास्वामिए का नय विचार विगेरे तेमां थोडं आवी ग... छे. आठमा अध्ययननो आठमो उद्देशो ॥८०४॥ समाप्त थयो. अने अध्ययन पण समाप्त थयु [टीकाना श्लोक १०२०] आठमु अध्ययन समाप्त.
M०४॥ उपधान श्रुत नामर्नु नवमुं अध्ययन. आठमुं अध्ययन का, हवे नवमुं कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबन्ध छे. के पूर्व आठ अध्ययनोमा जे आचारनो विषय कह्यो हतो, तेवो श्री वीर बर्द्धमानस्वामिए पोते पाळेलो छे, तेथी ते नवमां अध्ययनमां कहे छे. तेनो आठमा साथे आ प्रमाणे संबन्ध छे, के तेमां अभ्युद्यत मरण त्रण प्रकारनुं बताव्यु, तेवा कोइ पण अणसणमा रहेलो साधु आठमा अध्ययनमा बतावेल विधिए अति
घोर परीसह उपसर्ग सहन करी अने सन्मार्गनो अवतार प्रकट करी चार घाति कर्मनो नाश करीने अनंतज्ञान विगेरे अतिशयोवाळ 18 अप्रमेय महाविषयोन ख तथा परर्नु प्रकाशक एवं केवळज्ञान मेळवनार श्री महावीर प्रभुने समोसरणमां बेठेला अने सखोना हित
माटे देशना करे छे तेमने पोते ध्यानमा ध्यावे, एटला माटे आ अध्ययन कहे छे. आवा संबन्धे आवेला आ अध्ययनना चार अनुयोगद्वार कहेवा, तेमां उपक्रमद्वारमा अर्थाधिकार के प्रकारे छे, अध्ययन अर्थाधिकार तथा उद्देशार्थ अधिकार तेमा अध्ययननो | अर्थाधिकार टुंकाणमा पहेला अध्ययनमा कहेल छे, अने तेनेज खुलासावार नियुक्तिकार कहे छे
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