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आचा०
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बीजो उद्देशो. (प्रकरण )
पहेलो उद्देशा कहीने बीजो कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबंध छे, के गया उद्देशामां गृहस्थना घरमां वास करतां थता दोषो बताव्या, अहींया पण तेवा विशेष दोषो वसति संबंधी बतावे छे.
नामे समायारा भवंति से भिक्खू य असिणाणए मोयसमायारे से तग्गंधे दुग्गंचे पडिकूले पडिलोमे यात्रि भवइ, जं पुख्वं कम्मं तं पच्छा कम्मं पच्छा कम्मं तं पुरे कम्मं तं भिक्खुपडियाए वट्टमाणा करिज्जा वा नो करिज्जा वा, अह भिक्खूणं पु० अं तहप्पगारे उ० नो ठाणं ॥ ( मू०७२ )
केटलाक गृहस्थो शुचि समाचारवाळा भागवत विगेरेना भक्त अथवा भोगीओ ( वारंवार स्नान करनारा अथवा सुगंधी चंदन अगर केसर कर्पूर विगेरे वस्तुनो लेप करनार शोखीनो ) होय छे, अने साधुओ तेवी रीते वारंवार के एकवार खास कारण बिना फासु पाणीथी पण ब्रह्मचर्यना भंगना दोषने लीघे स्नान करनारा नथी, तथा कारण प्रसंगे मोया (पेशाब) नो पण उपयोग करनारा छे, (ज्यारे जंगलमां उतर्या होय अथवा उजड जग्यामां उतर्या होय, त्यां ओचींतो साप करडे तो तेना झेरथी बचवा रातना वैदनी खटपट न बनी शके, माटे पेशावनो उपयोग पूर्वे थतो, सांभळवा प्रमाणे ओचींतो खीलो के ठोकर लागी लोडी पुष्कळ नीकळ्तुं होय, तो पेशावनी धारा करवायी बंध पडे छे, तेत्रा कोइ पण कारणे बखते कोइ साधुए उपयोग कर्यो होय तो वारंवार स्नान करनारा गृहस्थने दुगंच्छा थाय ) माटे भिक्षु तेनी गंधवाळा छे, तथा कोइनो पेशाब गंधातो होय, परसेवो वास मारतो होय,
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सूत्रम्
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