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सूत्रम्
RS
॥७०१॥
आचा
वसहा कायरा जणा लूसगा भवंति अहमेगेसिं सिलोए पावए भवइ, से समणो भवित्ता
विब्भते २ पासहेगे समन्नागएहि सह असमन्नागए नममाणेहि अनममाणे विरएहिं अवि॥७०१॥
रए दविएहिं अदविए अभिसमिच्चा पंडिए मेहावी निट्ठियह वीरे आगमेणं सया परिक्कमि
जासि तिबेमि ( सू० १९३ ) इति धूताध्ययने चतुर्थ उद्देशकः ॥ ६-४ ॥ केटलाक साधुओ तत्व समजीने सम्यग उत्थानथी तैयार थइ वीर माफक वर्त्तता पाछळथी पाणीनी हिंसा करनारा थाय छे.
प०-ते केवी रीते तैयार थयेल हता ? उ०-ते विचारे छे के हे भाइ! मारे आ स्वार्थमां तत्पर एवा माता पिता पुत्र कलत्र &(स्त्री) विगेरे जेओ परमार्थ द्रष्टिए जोता अनर्थ रुप छे. तेमनी जोडे हुं शुं करीश ? कारण के तेओ मारुं कांइपण काय करवू के P रोग दूर करवामां समर्थ नथी, तेथी तेनावडे हुं शुं करीश ? एम जाणीने दीक्षा ले छे. अथवा कोइ दीक्षा लेनारने कोइए कयु. के हे भाइ ! रेतीना कोळीआ खावाजेवी निःसार दीक्षा लेवा वढे शुं करीश ? पण पूर्वना भाग्ये मळेलु भोजन विगेरे (सुखेथी) भोगव एम कहेतां ते दीक्षा लेनार वैराग्यथी रंगायलो होवाथी बोले, के हे बन्धो ! हुं आ भोजन विगेरेथी हवे शुं करीश ? में आ संसारमा भमतां अनेकवार भोगव्यु, तो पण तृप्ति न थइ, तो हमणां आ भवमा शुं थवानुं छे ? ए प्रमाणे विचारता केटलाक पुरुषो
संसार स्वभावने जाणनारा दीक्षा लेवा तैयार थइने मावाप तथा बीजां सगांने तथा धन धान्य हिरण्य बे पगवाळां दास दासी तथा 8 ट्रचार पगवाळां पशु विगेरेने छोडवामां (सिंह माफक) वीर माफक आचरण करनारा बनीने योग्य रीते संयम अनुष्ठानमां तत्पर
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