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बीजुं शुं छे ? ते कहे है:-चारित्रमा अस्थिर मतिवाळा ऋण गौरवना बन्धायला बनी परीषहोथी फरसातां संयम अथवा साधु आचा०६ वेषथी तेओ दुर थाय छे. प्र०-शा माटे?
18 सूत्रम उ०-असंयम नाम्ना जीवितना निमिक्तान अर्थात् हवे, अमे सुखेथी संसारमा जीवीy, एम वीचारीने सावध अनुष्ठान ॥६९८४ करीने संयमथी दुर थाय छ, तवा जीवोनु थाय छे ? ते कहे छे. ते कुसाधुओ घरवासथी नीकळ्या छतां ज्ञान दर्शन चारित्रना ॥६९८॥
& मूळ उत्तर गुणमां कंइ पण खामी आववाथी तेने दीक्षा पाळवी मुश्केल थाय छे, तेवा भ्रष्ट साधुओनु जे थाय; ते कहे छे (हु
अव्यय हेतुना अर्थमां छे.) जेथी असम्यग्अनुष्ठानथी दीक्षा छोडेला साधु बाळ बुद्धिवाळ। जे सामान्य पुरुषो छे, तेमनाथी पण दनिंदाय छे. (ज्यां होय; त्यां तिरस्कार पामे छे.)
वळी, तेओ संयम मुकवाथी कुवाना अरहट्टना न्याये वारंवार नवी जाति [जन्म ] मेळवे छे. DI -तेओ केवा छे ? उ०-अधःसंयम स्थानमा वखते रहेला होय; अथवा अविद्याथी नीचे [कुमागें] वर्तता होय; छतां II 3 पोते पोताने विद्वान मानता लघुताथी आत्माने उंचे चडावे छे. ( पोताने हाथे पोतानी स्तुति करे छे.) वळी, पोते थोडु भणेलो18 M होय; तोपण, मानथी उंचो बनीने रस अने साता गौरवनी बहुलताथी माने छे. के, हुं बहुश्रुत छु, अने आचार्य जे जाणे छे ते में त MI तत्वने थोडाज काळमां जाणी लीधुं छे. एबुं मानीने आत्माने अहंकारी बनावे छे.
ते आत्मश्लाघाथीज संतोष पामतो नथी; पण, बीजा उत्तम साधुआंनी निंदा करे के ते बतावे छे. उदासीन ते रागद्वेष रहित मध्यस्थ साधुओ घणुं भणेला होवाथी शांत होय हे, तेवा आचार्य विगेरे ज्यारे ते साधुनी भूल
वालय
नधी; पण, आत्माने अहवाशी माने हे कान
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