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आचा०
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थती. तेज कां छे के:
" णिम्माणे परो चिय अध्याण उ ण वेयणं सरीराणं । अप्पाणी चिअ हिअयस्स ण उण दुक्खं परो देइ ॥ १ ॥ बोजो माणस आत्माने पीडा नथीज आपतो पण शरीरने दुःख आपे छे, पण आत्याना ह्रदयनुं दुःख पोतानुं मानेलुं छे. पण पारको ते दुःख आपतो नथी.
शरीरनी पीडा तो थाय छेज ते बतावे छे. ज्यारे शरीर सुकाय भने पातळु थाय, त्यारे मांसने लोही सुकाय, तेवा उत्तम | साधुने लुखो तथा अल्प आहार होवाथी माये खलपणे परिणमे छे. पण रस पणे नहीं. कारणना अभावथीज थोडंज लोही अने | तेज शरीरपणे होवाथी मांस पण थोडुज दोय छे, तेज प्रमाणे मेद विगेरे पण ओछां होय छे. अथवा रुक्ष [लुखं] होय ते प्राये वाल (वायु करनार) होय छे. अने वायु प्रधान थवाथी मांस अने लोहीनुं प्रमाण ओकुंज होय छे. तथा अचेलपणुं होवाथी शीरने घासना कठोर फरस विगेरे थतां शरीरमां दुःख थवाथी पण मांस अने लोही ओछां थाय छे.
संसारश्रेणी जे रागद्वेषरुप कषायनी संतति छे, तेने क्षांति विगेरे गुणो धारीने विश्रेणी [ नष्ट ] करीने तथा समत्व भावपणुं जाणीने ते प्रमाणे वर्ते जेमके जिनकल्पी कोइ एक कल्प [व] धारी कोइ बे, अने कोइ ऋण पण धारण करे छे, अथवा स्थविर कल्पी मुनि मास क्षपण होय, कोइ पंदर दिवसना उपवास करनारो होय, तथा कोइ विकृष्ट अने कोइ अविष्ट तप करनारो होय. अथवा कोइ क्रूरगड जेवो रोज़नो पण खानारो होय, तो ते बधाए तीर्थकरना वचन अनुसारे वर्ते छे, अने परस्पर निंदा करनारा न होवाथी समत्वदर्शी छे, कथुं छे केः
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सूत्रम
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