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18 संबंधी धारण करेला होय छे. तथी भाभृतिकाने आश्रयी कहे छे, ते एकाकी विहारमा बोजा सामान्य साधुथी विशेष प्रकारे अंत-18 आचार प्रांत कुलोमां दश प्रकारनी एपणा दोषरहित आहार विगेरेनी शुद्ध एपणावडे तथा सर्व एषणा ते बधी एषणा. आहार विगेरे व सत्रम
| संबंधी उद्गम उत्पाद तथा ग्रास एपणा संबंधी परिशुद्ध विधिए संयममां वर्ने छे, बहुपणामां एक देशपणाने कहे छे, ते मर्यादामा ॥६७४॥ 10 रहेलो मेधावी साधु संयममा वर्ते वळी ते तेवां बीजां फुलोमा आहार सुगंधवाळो के दुर्गधवाळो होय, त्यां रागद्वेष न करे वळी18 ॥६७४॥
त्यां एकलविहार करतां मसाणमा प्रतिमा ए रहेतां यातुधान (राक्षस) विगेरेए करेला शब्दो भयकारक लागे; अथवा बीभत्स प्राणीओ दीप्त जीभवाळां [वाघ विगेरे] बीजा जीवोने पीडे; संतापे छे अने तेने पण संतापे तो, तुं तेवा विषय-दुःखना स्पर्शाने सम्यक्पकारे धैर्य राखीने सहन कर; एबुं सुधर्मास्वामि जंबूस्वामिने कहे छे:
बीजो ऊद्देशो समाप्त थयो.
त्रीजो ऊद्देशो कहे छे. बीजो उद्देशो कही त्रीजो कहे छे. तेनो आ प्रमाणे संबंध छे. बीजामा कर्मधोवानुं बताव्यु: अने ते उपकरण शरीरना विधूनन विना न थाय. माटे हवे, उपकरण विगेरेनुं विधूनन कहे छे. आवा संबंधे आवेला उद्देशानुं आ पहेलं मूत्र छे.
एयं खु मुणी आयाणं सया सुयक्खायधम्मे विहयकप्पे निज्झोसइत्ता, जे अचेले परिवुसिए तस्स णं भिक्खुस्स नो एवं भवइ-परिजुण्णे मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि सुत्तं जाइस्सामि सुइं जाइस्सामि
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