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आचा०
॥६६३॥
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महामुनी ( सू० १७९ )
शिष्य ! [ भो अव्यय आमंत्रणना अर्थमां छे] हुं तमने हवे पछी जे कडीश, ते बरोबर जाणो, अने सांभळवानी आकांक्षा राखो! (बीजी वार भो शब्द आ विषय महत्वनो छे एम बतावे छे ) के तमारे अहीं प्रमाद न करवो, हुं धूतवादने कहु छु आठ प्रकारना कर्मने धोइ नांखवा, ते घृत छे अथवा ज्ञाति [संगांना मोह]नो त्याग करवो, ते घृत छे. तेनो वाद (कथन) कहीश, ते तमारे एक चिशे सांभळवो आना संबंधमां नागार्जुनीया कहे छे के, (धुतोत्रायं पवेति) एटले आठ प्रकारना कर्मने अथवा पोताने धोवानो उपाय तीर्थंकर विगेरे कहे छे, ते उपाय कयो छे? ते कहे छे (इइ) आ संसारमां [खलु वाक्यनी शोभा माटे छे] आत्मानो भाव ते आत्मता [आत्मपं] ते जीवनुं अस्तित्व छे, अथवा पोतानां करेला कर्मनी परिणति छे, तेना वडे आ जीव समूह छे, पण अन्य लोकना मानवा प्रमाणे पृथ्वी विगेरे भूतोना कायाकारे परिणमवाथी जीवो वन्या नथी, अथवा प्रजापति (ब्रह्मा) ए बनावेल नथी एटले तेवा तेवा ऊंच नीच कुळमां पोताना पूर्वना कर्म संचयथी मेळवेला शुक्रशोणीत [वीर्य लोही माताना उदरमां ] एकत्र थवाथी अनुक्रमे मनुष्यनी उत्पति छे, तेनो आ प्रमाणे क्रम छे. -
सप्ताहं कललं विन्या, ततः सप्ताहमर्बुदम् अर्बुदाज्जायते पेशी, पेशीतोऽपि घनं भवेत् ॥ १ ॥
ते वीर्य लोहीनुं सात दिवसे कलल थाय, पछी अर्बुद थाय छे, पछी पेशी थाय, त्यार पछी घन थाय छे. तेमां ज्यांसुधी कलल थाय त्यांसुधी अभिसंभूत कहेवाय छे, पेशी थतां सुधी अभिसंजात कहेवाय छे, त्यार पछी सांगोपांग स्नायु शिर रोम विगेरे अनुक्रमे धतां अभिनिवृत्त छे, त्यारथी मनूत थतां अभिसंवृद्ध छे, अने धर्म श्रवणनी अवस्थामां आवतां धर्मकथा विगेरे निमित्त
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सूत्रम्
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