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सूत्रम्
॥६१०॥
www.kobatirth or से बेमि तंजहा-अवि हरए पडिपुण्णे समंसि भोमे चिट्ठइ उवसंतरए सारक्खमाणे, से आचाहा चिट्टइ सोयमज्झगए से पास सबओ गुत्ते, पास लोए महेसिणो जे य पन्नाणमंता पबुद्धा
आरंभोवरया सम्ममेयंति पासह, कालस्स कंखाए परिवयंति, तिबेमि (सू० ५६०) ॥६१०॥
से (जेवा) गुणवाळो आचार्य होय; ते हुं तमने तीर्थकरना उपदेशना अनुसारे कहुं हुं. ते आ प्रमाणे छे:-(वाक्य स्थापना H'तथा' वपराय छे. तथा, अपि शब्द भांगाना समुच्चय माटे वपराय छे.)
हुद (होद-कुंड) नुं वर्णन. तेना चार भांगा नीचे मुजब छे. (१) ते होदमां धीरे धीरे पाणी नीकळतुं होय अने पाई बीजी वाजुथी भरातुं होय ते । सीता तथा सीतोदा नदीना प्रवाहना कुंड जे, छे. (२) बीजो कुंड ते पाणी नीकळे खरं; पण पार्छ बीजु म आवे ते पद्मद्रह | ६ जेवू छे. (३) तथा त्रीजो पाणी नीकळे नहीं पण आवे खलं ते लवण समुद्र जेबो छे, (४) जेमां पाणी आवे पण नहीं अने नीकळे पण नहीं, ते, मनुष्य लोकनी बहारना समुद्र माफक छे, तेज प्रमाणे आचार्य पोते श्रुतने अंगीकार करीने बीजाने भणावे छे, तेथी ते पहेला भागमां आवे छे, तथा क्रोधना कारणे बीजा भांगामां आवे छे, एटले कषायना उदयमा ग्रहणनो अभाव छे तेथी
तप तथा कायोत्सर्ग विगेरेथी क्षपणना उपपत्तिनुं कारण छे, आलोचनाने अंगीकार करवाथी त्रीजो भांगो लागु पडे, आलोचनाना & कारणे कोइने संभळावी शके नहीं, कुमार्गमां पडेलो चोथा भांगामां छे कारण के तेने प्रवेशनिर्गमननो अभाव छ, अथवा धर्मि
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