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आचा० ॥६५१ ॥
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| आंखना बधा रोगोनो घोर आकर (समूह) थाय छे तथा 'जिमियंति' जाडयता - (चरबीनुं वध; अने लोहीतुं पाणी थ.) तेथी शरीरनां बधां अवयवों परवशपणुं ( अवशित्व ) छे. [ जेने लीधे जोइए, तेम, हाली - चाली शकाय के, फरी शकाय नहि ] 'कुणियंति' गर्भाधानगा दोषथी एक पग टुंको होय; अथवा, एक हाथ खोडवाळो होय ते कुणिरोग छे. ' खुज्जियंति ' कुबडो . पीठ विगेरेमां कुबडापणं होय; ते, 'कुबजी छे.' मातपिताना लोही-वीर्यनो दोष होय; तो तेथी, गर्भमां रहेला दोपोथी कुब्ज - (कुबडो) वामन विगेरेनी खोडो शरीरमां थाय छे; कहां छे केः
गर्भे वातप्रकोपेन, दौहृदेवाऽपमानिते । भवेत् कुब्जः कुणिः पंगुर्मूको मन्मन एवा वा ॥ १ ॥
गर्भनी अंदर वायुना प्रकोपथी अथवा दोहला न पूरावाथी गर्भमा रहेलो जीन कुबडो कुणिरोगवाळो पांगळो मुंगो के मन्मन रोगवाळो थाय छे, आंमां 'मुंगो' अने मन्मन एकांतरित (पेटना रोग पछीना रोगमां) मुखदोषमां बतावे छे, तथा 'जंदरि च' ति ( 'च' समुच्चयना अर्थमां छे ) वात, पित्त विगेरेना कारणे उत्पन्न थयेला आठ प्रकारना उदर रोग छे, ते रोगवाको उदरी छे, | तेयां जलोदर रोग असाध्य छे, बाकीना तुर्त थएला दवा करतां मटे तेवा छे, तेना आ प्रमाणे भेदो छे.
पृथक् समस्तैरपि चानिलाद्यैः प्लीहोदरं बद्धगुदं तथैव || आगंतुकं सप्तममष्टमं तु जलोदरं चेति भवंति तानि ॥ १ ॥ वधा अनिल [वायु] विगेरे एकेकथी के समुदायथी १ वायुनो ( वातोदर) २ पित्तनो [पितोदर ] ३ कफनो (कफोदर ) तथा ४ संनिपात (कष्टोदर) पालीह (बरोळनी गांठ) ५ उदर रोग (काचवी अकृत विगेरे) ६ बद्धगुद [अजीर्णाश] ७ आंगतुक ताव साथै उदर रोग (जीर्णज्वर) ८ जलोदर ए आठ रोग पेटना छे,
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सूत्रम् ॥६५१॥