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सूत्रम्
15 अथवा कायवालो नथी, एटले जेम वेदतावादी कहे छे के, एकन मुक्त आत्मा नेनी कायमां बीजा क्षीण कलेशवाळा प्रवेश करे छे, आचा०
मूर्यनां किरणो मूर्यमां समाइ जाय छे, (तेम इश्वरमा बधु ममाइ जाय छे,) तेम जैनमां सिद्धनुं स्वरुप नथी.
वळी न रुह (एटले बीज अने जन्मना अर्थमां रुह शब्द वपराय छे) एटले कर्म बीजना अभावथी फरीथी तेमने जन्म नथी. ॥६३९॥ पण जेम बौद्धमतवाळा माने छे के पोताना दर्शननु अपमान थवाथी ते मुक्त परमात्मा पण जन्म ले छे.
दग्धेन्धनः पुन रुपैति भवं प्रमथ्य, निर्वाणमप्यनवधारितभीरुनिष्ठम् ॥
मुक्तः स्वयंकृतभवश्च परार्थ शूरस्त्वच्छासनप्रतिहतेष्विह मोहराज्यम् ॥१॥ जैनाचार्य तेमना मंतव्यथी तेमनुं खंडन करवा जिनेश्वरनी स्तुति करतां कहे छे के, वळेलु लाकई जेम उगी न शके, तेम मोक्षमां गयेला कर्म रहित थएला जीवने जन्म मरण न होय छतां संसारर्नु पमर्थन करीने निर्वाण प्राप्त कर्या पछी मुक्त थइने पण र बौद्ध नायक पोतानी मेळे नवो भव लेनार पारकाने (शिक्षा करवा) माटे शूर बनेला तेणे विना विचारे बीकणपणाना अंतकाळु निर्वाण मान्यु छे (अर्थात् परोपकार करवा दुष्टने दंड देवा पोताना शाशननुं महत्व वधारवा जन्म ले छे) एवा विपरीत बोलनारा जेओ तमारी आज्ञाथी बहार रहेला छे, तेमने विषे मोह राजानु आवु प्रबळ राज्य ! (जैन धर्ममा एबु मंतव्य छे के मुक्त जीवने फरी जन्म नथी)
तथा अमूर्त यवाथी तेने संग न होवाथी ते असंग छे, तथा स्त्री पुरुष नपुंसकनी गणतरीमां नथी. (त्यारे केवा छे ते कहे छे) ल विशेषथी जाणे ते परिज्ञ छे, तथा सामान्य बरोबर जाणे (देखे एची संज्ञावाळो ज्ञानदर्शन युक्त छे. प्र.-जोस्वरूपथी मुक्तात्मा है
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