________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा०
॥६३०॥
www.kobatirth.org
प्र० - केवी रीते ? उ० - "पत्राएण पवाये जाणिज्जा" प्रकृष्टवाद ते प्रवाद 'सर्वज्ञ वाक्य' छे, ते मत्रादवडे वीजा तीर्थिकोना प्रवादनी परिक्षा करे, जेमके वैशेषिको तेनु भुवन विगेरे करनारने इश्वर मांने छे, कहे छे केः
अन्यो जंतुरनीशः स्यादात्मनः सुखदुःखयोः । ईश्वरप्रेरितो गच्छेत् स्वर्ग वा श्वभ्रमेव च । १॥ बीजो जीव पोतानुं सुख दुःख भोगववा असमर्थ छे, पण इश्वरनी प्रेरणा थतां ते स्वर्गे अथवा नरकमां जाय छे. आवा प्रवादोने जिनेश्वरमा प्रवादवडे विचारवा जेमके आकाशमां इन्द्र धनुष्य विगेरे विस्रसा परिणामे परिणमीने पोताने रुपे बनेला छे, तेनो वनावनार जुदो इश्वर विगेरे कारणनी कल्पना करवामां अति प्रसंग आवशे, तथा घटपट विगेरेमां दंड चक्र चीवर (कपडे) पाणी कुंभार तुरी बेम शंलाका कुविद विगेरेना व्यापारथी आंतरा विना मळता आत्मलाभवाळाने मुकी लेने बदले नहीं | देखाता एवा इश्वरथी पदार्थों बने छे एवी कल्पना करतां रासभ (गधेडा) ने पण कर्ता कां न गणवो ?
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वादीनो उत्तर--तनुकरण विगेरेमां पण पोतानुं करेलुं कृत्य अने तेथी बन्धापलं कर्म तेना विना अवंध्य छे. पण पोताना कर्मनी विचित्रता छे. कर्मनी उपलब्धि सिवाय आवुं क्यांथी होय ? जैनाचार्य कहे छे, जो तमे एम मानो तो बन्नेमां ते समान कथन छे, वळी कारणरुप माता पिता एक छतां अपत्यनी विचित्रता देखवाथी अधिक निमित्तवडे भाव, अने ते इश्वरनो स्त्रीकार करवा करतां अदृष्ट (नशीब ) नेज इच्छवं सारुं छे? कारण के तेना विना सुख दुःख सुभग दुर्भग विगेरे जगत्नी विचित्रता न होय ! हवे सांख्य मतवाळा कहे छे.
For Private and Personal Use Only
सूत्रम
॥६३०॥