________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kcbatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४. प्रमाणे एकांतथीज लोक अस्तित्व मानतां हेतुनो अभाव बताव्यो, एज प्रमाणे नास्तित्वनी प्रतिज्ञामां पण समजवू, ते बतावे छे, कोइ8 आचा० दिएम कहे के " लोक नथी" आq बोलनारने पूछq के तमे छो के नहि ? अने जो तमे छो तो लोकमां के लोक बहार जो लोकमां
सुत्रम । हो, तो लोक नथी एवं केम बोलो छो ? अने लोक बहार एम बोलशो तो खर, विषाण (गधेडान शीगडा) माफक असत्य सिद्ध ॥७४०॥ Bथया, तेथी मारे कोने उत्तर आपको ? आ प्रमाणे दरेक विद्वाने पोतानी मेळे विचारीने एकांत वादीोनुं समाधान करवू.
॥७४०॥ ____एवं'-जेम अस्तित्व नास्तित्व वाद तेमने मानेलो आकस्मिक नियुक्तिक (युक्ति विनानो) छे, एज प्रमाणे ध्रुव अध्रुव विगेरे - वादो पण नियुक्तिज छे, पण अमारा जैन स्याद्वाद वादीना जैनमतमां कथंचित् (कोइ अंशे) ना स्वीकारथी उपर बतावेला दोषनो
प्रसंग नथी, कारण के स्वपर सत्ताना उपादान व्युदासथी वस्तुनुं वस्तुपणु उपाद्य छे, एथी स्व द्रव्य क्षेत्र काळ स्वभावथी वस्तुना र अस्तिपणुं छे, अने परद्रव्य क्षेत्र काळ स्वभावथी नास्तिपणुं छे, कडं छे के:
सदेव सर्व को नेच्छेत, स्वरूपादिचतुष्टयात । असदेव विपर्यासान् न चेन व्यवतिष्ठते ॥१॥ स्वरूप विगेरे चार (द्रव्य क्षेत्र काळ भाव) थी वधा पदार्थोने सत् तरीके कोण न इच्छे? अने तेथी उलटुं ते बीजाना द्रव्यादि ६ चष्टतुयथी पोते असत् छे, जो तेम न मानीए तो वस्तुनी व्यवस्था रहे नहि. विगेरे जाणवू, कारण के मूत्रना संबंधना लीधे आ
प्रयास थोडमां समजाववा माटे कहेल छे, माटे वधारे कहेता नथी, ए प्रमाणे ध्रुव अध्रुव विगेरेमां पण पांच अवयव अथवा दश अवयव अथवा बिजी रीते एकांत पक्ष साथे स्यावाद पक्ष सरखावी विचारोने योजवो. (आ पांच अवयव अने दश अवयत्रनु स्वरुप दशवैकालिक प्रथम अध्ययनमा हरिभद्रमूरि प्रहाराजनी टीकमां बतावेल छे.
RSA
वनवाशबहन
For Private and Personal Use Only