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आचा०
॥७३४॥
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एटले, अदत्त ले छे. अथवा, नाना प्रकारनी युक्तिओ योजे छे. ते बतावे छे के, स्थावर जंगम स्वरूपवाळो लोक छे, तेमां नव खंडवाळी पृथ्वी छे अथवा सात द्वीपवाळी पृथ्वी छे. वीजा मतनां माने छे के, ब्रह्माना अंडामा पृथ्वी अंदर रहेली छे. वळी बीजा मतवाळा कहे छे के ब्रह्माना अंडा जेवी पाणीमां रहेली भींजाती एवी सेंकडो पृथ्वीओ पाणीमां रहे छे तथा जेओ पोताना कर्मना | फळ भोगवनारा छे परलोक हे बंध मोक्ष छे पांच महाभूत छे (आवा जुदा जुदा अनेक मत छे.)
तो कहे छे के आ बधो लोक जे देखाय छे ते बधुं माया [जुठ] नी इन्द्र जळ जेवुं तथा स्वप्नमां देख्या जेबुं छे अने अविचारीत रमणीयपणे भूतनो अभ्युगम [ स्वीकार ] करवा छतां परलोकनो अनुयायी जीव पण नथी, शुभ अशुभ फळ - नथी पण जेम किणु विगेरेमांथी जेम नसो उत्पन्न थाय छे, तेम भूतोमांथी चैतन्य थाय छे. आ वधुं मायाकार गंधर्व नगरना जेवुं छे. कारण के पून्य पाप विगेरे युक्तिथी सिद्ध थतां नथी. बळी चार्वाक कहे छे:
यथा यथाऽर्थांश्चिन्त्यन्ते, विविच्यन्ते तथा तथा । यथेतत्स्वयमर्थे भ्यो रोचते तत्र के वयम्। १ ।। भौतिकानि शरीराणि, विषयाः करणानि च । तथापि मन्दैरन्यस्य तत्त्वं समुपदिश्यते ॥ २ ॥
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जेम जेम अर्थो विचारीए तेनुं विवेचन करीए तेम तेम जे जे अर्थ तरफ रुचे तेमां आपणे कइ गणत्रीमां (जेम जेम विचार करीये तेम तेम आ बधुं विषय तरफ खचाइ जाय त्यारे आपणे विचार करवानी शुं जरुर . )
आ शरीर तथा विषय अने इन्द्रियो वधुं भूतमांथी वनेलुं छे. तोपण मंद बुद्धिवाळाए बीजा जीवोने फसाववा तत्व तरिके ठसावी दीधुं छे..
वळी सांख्य विगेरे मतवाला कहे छे, लोक नित्य छे. कारण के प्रकट थर्पु, लय थवं एटलुंज मात्र उत्पात अने विनाश स्वरुप
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सूत्रम ॥७३४ ॥