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सूत्रम्
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॥६१७॥
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आचा०
गौतम कहे छे:-हे भगवान् ! ते समये साधु मनमा एम चितवे के, "तेज सत्य, निःशङ्क छे. के जे, जिनेश्वरे कहेलु छे."
तो, ते आज्ञा पाळवानो आराधक थाय के ? ॥६१७] उत्तर-हे गौतम ! एम मनमा धारे; तो आराधक थाय छे.
. वळी गुरु उपदेश आपे छे के, साधुए विचार के-- वीतरागा हि सर्वज्ञा मिथ्या नं ब्रवते क्वचित् । यस्मात्तस्माद्वचस्तेषां, तथ्यं भृतार्थदर्शनम् ॥१॥ & .. वीतराग पोते सर्वज्ञ छे. अने तेथी, निश्चे तेओ जुठं न बोले. जेथी, तेमनुं वचन जीवोन स्वरुप बतावनाएं साचुं छे. विगेरे
समजी लेवु. वळी, आ विचिकित्सा दीक्षा लेनारने आगममां मति स्थिर थयली न होवाथी थाय छे.. तेवाए पण उपर बतावेलु । रहस्य चिंतवq ते कहे छे:
सडिस्स ण समणुन्नस्स संपवयमाणस्स समिति मन्नमाणस्स एगया समिया होइ १, समियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया होइ २, असमियंति मन्नमाणस्स एगया समिया होइ ३, असमियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया होइ ४,समियंतिमन्नमामाणस्स समिया वा असमिया वा समिया होइ उवेहाए ५, असमियति- मन्नमा
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