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13ासत्रम
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॥७२२॥
18"क्षपक श्रेणीमां जेने जेटलो काळ कषायो क्षीण थाय, तेने तेटलानोक्षय थवाथी देश विमुक्ति छे, तेथी साधुओ देश विमुक्त छे. भवस्थ आचा05
केवली साधुओं पण भव उपग्राहिक कर्मना सद्भावथी देश विमुक्तज छे, अने सर्वथा विमुक्त तो सिद्ध भगतंज थाय छे. (गाथार्थ)
शंका-मोक्षनी पूर्वे बंधपणुं होय छे, जेमके निगड (हेड) विगेरे बन्ध होय तो तेना मोक्षनो संभव थाय, ते शंका दूर करवा ॥७२॥ माटे बन्ध अभिधान पूर्वक मोक्ष बतावे छे.
कम्मयदव्बेहिसम, संजोगो होइ जो उ जीवस्स । सो बन्धो नायबो, तस्स विगो भवे मुक्खा ॥२६॥ कर्म वर्गणाना द्रव्य (पुद्गलो) साथे जे जीवनो संयोग छे, ते प्रकृति स्थिति अनुभाव अने प्रदेश रुप बद्ध स्पृष्ट निधन निकाचन अवस्थावाळो बन्ध जाणवो. कारण के आत्मानो एकेक प्रदेश अनंत अनंत कर्म पुद्रलं वडे बन्धायला छे, अने अनत अनंत नवा बन्धाइज रह्या छे, कारणके बाकीना अग्रहण योग्य छे. प्र०-आठ प्रकारनां कर्म केवी रीते बन्धाय छे ? उ०-मिथ्यात्वना उदयथी-कधुं छे, के.
" कहं णं भंते ! जीवा अट्ठ कम्मपगडीओ बंधति ?, गोअमा ? णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं दरिसणावरणिज कम्म निअच्छन्ति, दंसणमोहणिजस्स कम्मस्स उदएणं मिच्छत्तं णियच्छन्ति, मिच्छत्तणं उइनेणं एवं खलु जीवे अट्ठ कम्मपगडीओ बन्धइ" यदि, वा-"णेहतुप्पिअगत्तस्स; रेणुओ लग्गई जहा
अंगे। तह रागदोसणेहालियस्स कम्मपि जीवस्स ॥१॥" प्र०-हे भगवन् जीवो आठ प्रकारन' कर्मो केवी रीते बांधे छे ?
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