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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७९८ ॥ www.kobatirth.org आ प्रमाणे - पांचमो उद्देशो समाप्त थतां, धूताख्य नामनुं छहुँ अध्ययन पण समाप्त थयुं. (टीकाना श्लोक ८३५ छे.) छ अध्ययन समाप्त छट्टा पछी सात अध्ययन कहेनुं जोइए, पण ते विच्छेद जवाथी आठमुं विमोक्ष नामनुं अध्ययन कहे छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथाष्टमं विमोक्षाध्ययनम् सातसुं अध्ययन महापरिज्ञा नामनुं हतुं, ते विच्छेद जवाथी तेने मुकी छट्टा साथै आठमानो संबंध कहेवो जोइए, ते आ प्रमाणे छे, छट्टा अध्ययनमां पोतानां कर्म शरीर, उपकरण तथा गौरवत्रिक तथा उपसर्ग सन्मानना विधूनन बडे निःसंगता बतावी, पण जो अंतकाळे सम्यग् निर्वाण श्राय तोज ते सफळता पाये तेथी सम्यग् निर्याण (समाधि मरण) बताववा माटे आ आरंभ करे छे. अथवा निःसंग बिहारी साधुए अनेक प्रकारना परिसह उपसर्गे सहन करवा, एवं छट्टामां बतान्युं, तेमां मारणांतिक उपसर्ग आवे छते अदीन मनवाळा बनीने सम्यग् निर्याणज कर, ए विषय बतावत्रा आ आठमुं अध्ययन छे; आ संबंधे आवेला आ अध्ययनना उपक्रम विगेरे चार अनुयोग द्वार थाय छे, तेमां उपक्रम द्वारमां आवेलो अर्थ अधिकार वे प्रकारनो छे, तेमां अध्ययननो पूर्वे को छे, अने उद्देशानो अर्थाधिकार नियुक्तिकार कहे छे. असमणुन्नस्स विमुक्खो, पढमे विइए अकप्पियविमुक्खो; पडिसेहणा य रुट्ठस्स, चेव सन्भावकहणा यः ॥ २५३ ॥ तइयंमि अंगचिट्ठाभासिय आसंकिए य कहणा यः सेसेसु अहीगारो उबगरणसरीरमुक्खेमु || २५४ || For Private and Personal Use Only KIRJA सूत्रम ॥७१८॥
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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