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सुत्रम
18 शांति विगेरे दश प्रकारनो धर्म पूर्वे बतावेलो छ, ते कहे छे. अने शांति विगेरे पदोमा बतावेल तत्वने विचारीने स्त्र अने परना आचा
उपकार माटे भिक्षु जे धर्म कथानी लब्धिवाळी होय ते कहे छे. अने ते धर्म जेबी रीते कहे छे, ते बतावे छे.
अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खमाणे नो अत्ताणं आसाइजा नो परं आसाइजा नो अन्नई ॥७१२॥
पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई आसाइजा, से अणासायए अणासायमाणे वज्झमाणाणं पाणाणं भूयाणं जोवाणं सत्ताणं जहा से दीवे असंदीणं एवं से भवइ सरणं महामुणी एवं से उहिए ठियप्पा अणिहे अचले चले अबहिल्लेसे परिवए संक्खाय पेसलं धम्म दिट्टिमं परिनिव्वुडे, तम्हा संगति पासह गंथेहि गढिया नरा विसन्ना कामकंता तम्हा लूहाओ नो परिवित्तसिजा, जस्सिमे आरंभा सबओ सबप्पयाए सुपरिन्नाया भवंति जेसिमे लूसिणो नो परिवित्तसंति, सेवंता कोहंच माणंय मायं च लोभं च एस तुढे वियाहिए तिबेमि (सू० १९५)
ते मुमुक्षु भिक्षु-धर्मने पूर्वापर विचार करीने, अथवा सांभळनार पुरुषनी पूर्वा पर स्थिति विचारी जेने जेयूँ कथन योग्य होय, तेवो धर्म तेने कहे छे. (आ उपसर्ग मर्यादाना अर्थमा छे तेथी,) मर्यादावडे सम्यग् दर्शन विगेरेनुं जेईं अनुष्ठान होय, तेथी शातना (विरुद्ध) करतां अशातना थाय छे माटे, तेवी अशातनार्थी आत्माने दोषित न करे. अर्थात् जेम आशातना न थाय; तेम
BRECEMरान्स
॥७१२॥
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