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।।५१६।।
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दुर्गुणोथी अशुभ नाम बन्धाय छे. जाति, कुळ बळरूप तप, विद्या लाभ अश्वर्यनो मद न करवाथी ऊंचगोत्र वन्धाय छे, अने जाति विगेरेनो मद करवाथी, तथा पारकानी निंदा करवाथी नीचगोत्र बन्धाय छे, दान, लाभ भोग-उपभोग, अने वीर्य ए पांचना अंतराय करवाथी अंतरायकर्म बन्धाय छे. आज उपर कहेला आस्रवो छे, हवे परिस्रवोतुं स्वरूप बतावे :
raat fat बाह्य अने अभ्यंतर तप ते कर्मनी निर्जरा करनार परिस्ात्र छे. आ प्रमाणे आवर करनार अने निर्जरा करनार मेदोसहित जीवो बताया छे, ते बघा जीव विगेरे सात पदार्थो मोक्ष सुधी छे ते जाणवा. आ पदार्थोंने तीर्थकर तथा गणधर भगवन्तोए लोकोत्तर ज्ञानवडे जाणीने जुदा जुदा बतावेल छे, अने तेज प्रमाणे तेमनी आज्ञामां वर्तनार बीजो कोइपण साधु चौद पूर्व विगेरेनुं ज्ञान धरावनार जीवोनां हितने माटे बीजाभोने पण उपदेश आपे छे, ते बतावे छे:
आघाइ नाणी इह माणवाणं संसारपडिवण्णानं संबुज्झमाणानं विन्नाणपत्ताणं, अट्टावि संता अदुवा पत्ता अहा सञ्चमिणं तिबेमि, नाणागमो मच्चुमुहस्स अस्थि इच्छा पणीय। कानिया कालगहिया निचयनिविद्या पुढो पुढो जाई पकप्पयंति ( सू० १३१ )
वा पदार्थोंने बतावनार ज्ञान छे. ते ज्ञान ने होय; ते ज्ञानी कडेवाय, ते ज्ञानी प्रवचनमां मनुष्योने उपदेश करे छे. मनुष्य लेवानुं कारण एछे के, पचेन्द्रिय सांभळे समजे तो पण, तेओ संपूर्ण चारित्र तथा संवर लइ शके नहिः अने देवता विगेरे सांभळे, पण आदरी शके नहि वळी, केवळीने उपदेशनी जरुर नथी; माटे संसारमा रहेलां घातीकर्मवशळां जीवोने आ उपदेश अपाय छे.
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सूत्रम ॥ ५९६ ॥