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सूत्रम
॥५००॥
काव
18 सम्यग्दर्शन विना ज्ञानचारित्र कार्यसिद्ध न करी के. तेज नियुक्तिकार गाथानो उपसंहार करतां बतावे छे. आचा
कुणमाणोऽविय किरियं, परिच्चयंतोऽवि सयणधणभोए,दितोऽवि दुहस्त उरं,न जिणइ अंधो पराणायं ॥२२०॥
क्रियाने करतो, तथा पोतानां स्वजन, धन भोगाने त्यजवा छतां तथा दुःखने उर आपवा (सामे जवा) छतां पण अंघो अंध॥५००॥ पणाने लीधे शत्रुना सैन्यने जीती न शश्यो. ते दृष्टांतथी हवे बोध आपे :
कुणमाणोऽविनिविर्ति, परिच्चयंतोऽवि सयणधणभोए ।दितोऽवि दुहस्स उरं, मिच्छद्दिहि न सिन्झइ3 ॥२२१॥
पटले मिथ्यादृष्टि पोताना दर्शनमां कहेली क्रिया करे.
जेमके पांच यमो, तथा पांच नियमो विगेरे पाळे तथा पोताना धन सगो तथा भोगोने त्यागे. तथा पंच अग्निनो ताप तपवा विगेरेथी दुःख सहन करे छतां मिथ्यादृष्टि दर्शननी खामीथी सिद्धि पद नथीन पामतो, (गाथामा उ शब्द एकवारना अर्थमा छे.) से पूर्वे जेम अंध कुमार शत्रुने न जीती शक्यो तेम आ कार्य सिद्धिमां असमर्थ छे, जो एम छे तो शुं करवू? ते कहे थे:। तम्हा कम्माणीयं जे उमणो दंसणमि पयइजा, दंसणवओ हि सफलाणि हुंति तवनाणचरणाई ॥२२२॥
जेथी सिद्धि मार्ग, मूळ सन्यग् दर्शन छे, तेना विना कर्मक्षय न थाय, तेथी कर्म शत्रुने जीतवानी इच्छावालो मनुष्य सम्यग दर्शन मेळववा प्रथम यत्न करे, अते तेनी प्राप्तिमा भुयाय ते बताचे छे. के निचे दर्शन पामेलानां तप ज्ञान तथा चारित्रनां बयां & अनुष्ठानो सफळ थाय छे. नेथी मां यत्न करवो.
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