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स
सुत्रम्
अथवा, उपशम न पाय; नो. जंतुभोने बहु दुःखनो संभव छे, ते मूत्रमा बतावे छे. आचा०
दुःख एटले असातावेदनीय-कर्म अथवा पीडा थाय. ते जीवोने दुःख थतुं ज्ञ-परिज्ञावडे जाणीने, अने प्रत्याख्यान-परिज्ञावडे
जेम, तेनो अभाव थाय; तेम, साधु ए करवू. necent प्रश्नः-अभाव केवीरीते थाय? अथवा ते अभावथी | लाभ थाय? ते बन्ने बतावे छे. 'वंता' विगेरे जे स्वआत्माथी जुई। 1 धन, पुत्र, शरीर, विगेरे छे, तेनो ममत्त्व भावनो संबन्ध छे, अने तेनाथी शरीर विगेरेने दुःख थाय छे, ते दुःखना हेतुरुष-उपादान
कारण, अथवा कर्म ने त्याग करवा प्रयत्न करे छे. एटले, कर्मविदारण करवामां धैर्य राखनारा धीरपुरुषो जेनावडे मोक्षमा जशयः ।
तेवु चारित्रयान जे, अनेक करोडो भवमा मळवू दुर्लभ छे, अने केटलाक जीवो ते मेळवीने पूर्वना अशुभकर्मना उदयथी, प्रमादथी लातेहारीजाय छे. एटले, जेम कोइने स्वप्नामा मेळवेल धननो भंडार नकामो थाय छे, तेम प्रमादथी हारनारने मळेलां चारित्रनो लाभ धतो नथी. माटे तेने मो? यान, ए, विशेषण आपेल छे.
अथवा सम्यग दर्शन विगेरे त्रण रत्नरूप महायान छे, अने जेने मोढुं यान छे, ते मोक्ष के, तेने धीर पुरुषो प्राप्त करे छ प्रश्न:-ए बात ठीक छे. पण एक भववढेज महायानरूप चारित्र मेळ्यवाथी मोक्ष मळे के परंपराए मोक्ष मळे.
उत्तर-अमे बन्ने प्रकारे मानीए छीए एटले कोइ थोडा कर्मवाळाने योग्य क्षेत्रकाळ मळता तेज भवमा मुक्ति थाय छे, अने। ४ बीजाने परंपराए मोक्ष थाय छे, ते बतावे छे, 'परेण परं जेणे सम्यक्त्व प्राप्त कर्यु, तेणे नरक तिर्यंच गति अटकावी, अने ज्ञान & प्राप्त करीने यथाशक्ति संयम पाळीने आयु कर्म पुरु यतां सौधर्मादि देवलोकमां जाय छे, त्यांथी पण पुन्य थोडे वाकी रहे त्यारे
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