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नामनां चार स्थान कहे छे. आचा० नामकर्मनी प्रकृतिनां बार सत्तास्थान छे, ते आ प्रमाणे:
सूत्रम् (१) ९३ (२) ९२ (३)९१ (४) ८८(५)८६ (७) ७९ (८) ७८ (९) ७६ [१०] ७५ [११]९ [१२] ८ तेनी विगतः॥४४७॥ गति चार, पांच जाति, पांच शरीर, पांच संघात, पांच बंधन, छ संस्थान अंगोपांग त्रण, संहनन छ, वर्ण पांच, गंध बे, रस/५/
॥४४७॥ पांच, आठ स्पर्श, अनुपूर्वी चार.
अगुरु लघु, उपघात, पराधात, उछ्वास आतप, उद्योत. ए छ तथा प्रशस्त अने अप्रशस्त, ए वे विहायोगति, तदा प्रत्येक शरीर, प्रस, शुभ, सुभग, सुस्वर मूक्ष्म, पर्याप्त स्थिर आदेय अने यश आ दश शुभ छे अने तेनाथी उलटी बीजी दश अशुभ छे. 11 कुल २० तथा निर्माण अने तीर्थकर एम वधी मळीने नाम कर्मनी ९३ प्रकृति छे.
तेमांथी तीर्थकर नामना अभावमा ९२ छे अने आहारक शरीर संपात बंधन अंगोपांग ए चारना अभावमा ९३माथी ४ बाद। ४ कस्ता ८९ छे तेमांथी पण तीर्थकर नामकर्म बाद करता ८८ तथा देवगति तथा अनुपूर्वी वमेली बाद करता ८६ अथवा नरकगति |
योग्य बांधतां तेनी गति तथा अनुपूर्वी तथा वैक्रिय चतुष्ठ बांधनारने ८० साथे आ छ मेळवता ८६ छे तथा देवगति पायोग्य बांधनारने पण ८६ छे अने नरक गति तथा अनुपूर्वी मळी बे तथा वैक्रिय चतुष्क चार ए छ वमता ८० रहे छे. वळी मनुष्यगति अनुपूर्वी बन्ने वमता ७८ छे. आ अक्षपक जीवोनां कर्मनां सत्ता स्थान छे अने हवे आपकबाळानां कहे छे.
९३ प्रकृतिमाथी नरक निर्यक गति तथा अनुपूर्वी बन्नेनी मळी तथा १, २, ३, ४, इन्द्रिय जाति मळी चार तथा आतपद
ॐ
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