________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir
1904
विरुप एम वे भेद छे, ते समीप आवतां अनुकूळ वहाला, अने प्रतिकूळ ते अणगमता लागे छे, तेवू जे मुनि जाणे ते लोकने जाणे স্বাৰা छे. तेनो अर्थ आ छे -मुनिए तेवा विषयो प्राप्त थाय; तोपण अनुकूळमां राग 'न' करवो; अने प्रतिकूळमां द्वेष न करवो तेज
सूत्रम् म खरीरीते तेओर्नु अभिसमन्वा गमन (जाणवापणु) छे, पण चीजुं नथी. (आ संसारमा मुनिने बिहार विगेरेमां पुण्योदयथी मधुर है। ॥४३६॥ 15 अवाज, सुंदर देखाव, रमणीय सुगंधी खटरस-भोजन, तथा कोमळ स्पर्श विगेरे प्राप्त थाय छे, तथा पापना उदयथी तेथी उलटुं ॥३६॥ Kथाय छे. तेवा समयमा संसारी-जीवो हर्षखेद करे छे, तेम मुनिए न करवो.)
अथवा आलोकमांज शब्द विगेरे विषयो प्राणीओने दुःखने माटे थाय छे, तो परलोकनुं तो, शुं कहे ? कj छे के:5 उक्तंच-रक्तः शब्दे हरिणः स्पर्श नागो रसे च वारिचरः। कृपणपतको रूपे भुजगो गन्धे ननु विनष्टः ॥१॥
हरिण शब्दमां रक्त ययलो, हाथी स्पर्शमा, माछल रसमां, अने रुपमां गरीब पतंगी, तथा मुगंधीमा साप, (अथवा भमरो) खरेखर, नाश पाम्या छे, पच्चसु रक्ताः पञ्च विनष्टा यत्रागृहीतपरमार्थाः । एकः पञ्चसु रक्तः प्रयाति भस्मान्ततामबुधः ॥२॥
आ प्रमाणे, पांच इन्द्रियोमांथी एकमां रक्त थयेला परमार्थ न जाणनारा ते, पांचे अहींयां नाश पाम्या छे, तेम मूर्ख माणस एकलो पांचेमां रक्त थतां तेनो नाश थाय छे. अथवा, पुष्पशाळयी शब्दमां भद्रा नाश पामी अर्जुन चोररुप जोवा जतां नाश पाम्यो; गंधमां गंध मियकुमार नाश पाम्योः रसमां सौदास, अने स्पर्शमां सत्यकि विद्याधर, अथवा सुकुमारीकानो पति ललितांग नाश पाम्यो;
SEASESASRKESACS
For Private and Personal Use Only