________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा०
।।६०५ ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हे काम हुं तारुं स्वरूप जाणुं छु, के तुं संकल्पथी उत्पन्न थाय छे पण हुं तारो संकल्प करवानो नथी, तेथी तुं मारा हृदयमां आववानो नथी !
प्रश्नः - पण शा पाटे खीमां मन न कर ? उ:- स्त्रीसंघमां वर्तनारो अपरमार्थ दृष्टिवाळ प्रथमथीज ते स्त्रीनो संग न छोडदा पैसो पेदा करवा खेती वेपार विगेरेनी सावध क्रिया करतो अगणित (अत्यंत ) भूख तरस ठंड ताप विगेरेना परिषहो सहेबाना आ लोकमांज दुःखरूप दंडो सहे छे, अने ते दंडो स्त्री संबन्ध करवा पहेलांज कराय छे, (तेथी पूर्वे कं छे) अने स्त्री ग्रहण कर्या पछी विषयमा निमित्तथी बंधायला पापवडे नरक विगेरेनां दुःखोना स्पर्शो भोगना पडसे, खीना अकार्यमा प्रवर्त्तेलाने पूर्वे दंड अने पछी | हाथ पर विगेरे छेदावाना स्पर्शो छे, अथवा पूर्वे (कोड़ स्त्री साथै छु कुक्रत्य करतां) ताडना (लाकडीनो मार) विगेरे छे अने पछीथी स्त्रीनो संबन्ध तथा आलिंगन चुंबन विगेरे हे ते बतावे छे.
बन्दी र आणेल अने रोकेल राजकुमारीए गवाक्षमांथी फेंक्यो ते नीचे पडेल आवीलने लेवाथी राजपुरुषोए देखवाथी ठोक्यो, त्यारे राजकुमारीने मूर्छा धवाथी तेने देखतां इन्द्रदत्त वणिकने प्रथमथी दन्दा खावा पड्या, अने पाछळथी कन्या मळतां स्पर्श त्रिगेरें सुख मळयुं, अथवा कोइने प्रथम सुख विगेरेना स्पर्शो छे, अने पाछळथी ललितांग कुमारनी माफक बीजा व्यभिचारीओने दुःख पढे छे, 'किंच' बळी आ स्त्री संबन्धो क्लेश संग्रानो सङ्ग (संबन्ध) करावे छे, अथवा कलह (क्रोध) तथा आसङ्ग से राग छे, ए| टले रागद्वेष करावनारा छे, जो एम छे तो शुं करे, ते कहे छे. ऐहिक अमुष्मिक (आ लोक परलोक) संबन्धी अपायोना कारणे स्त्री संगनी प्रत्युपेक्षावडे 'आगमेत्तत्ति' जाणीने आत्माने आसेवन ( कुचाल) थी रोके, आ प्रमाणे हुं कहुं हुं, ते तीर्थकरना वचन
For Private and Personal Use Only
उन
सूत्रम ||६०५॥