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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० १५७७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से० – ते परिग्रह छोडनार ने सारीरीते प्रतिबद्ध तथा सारी रीते उपनीत ज्ञान विगेरे छे, (परिग्रह छोडनारने सारीरीते त्रण रत्नोनी माप्ति छे) एवं जाणीने गुरु कहे छे, हे मानव ! तुं परम ज्ञान चक्षुवाळो बनीने अथवा मोक्षनी एकदृष्टिवाळो बनीने जुदी जुदी जातना तप अनुष्ठाननी विधिवडे संयम अनुष्ठानमां पराक्रम कर' का माटे आ पराक्रम करवानो उपदेश करे छे ? 'एएसचे ' जेओ आ परिग्रहथी विरक्त बनीने परम चक्षुवाळा थया छे, तेओमांज परमार्थथी ब्रह्मचर्य छे, पण बीजामां नथी, कारणके ब्रह्मचर्थनी नचवाट बीजामां नथी, अथवा ब्रह्मचर्य नामनो आ श्रुतस्कंध छे, अने तेनुं वाध्य पण ब्रह्मचर्थं छे, ते आ ब्रह्मचर्य परिग्रह न राखनारा ओमांज छे. आ प्रमाणे सुधर्मास्वामी कहे छे, के में कहां, अने दवे कहीश, ते बधुं सर्वज्ञना उपदेशथी कहुं छु, ते बतावे छे, 'सेमुचमे' – जे जे कहो, अने जे हवेकहीश, ते में तीर्थकर पासे सांभ छे, अने ते प्रमाणे मारा आत्मामां स्थिर थयुं, माटे अध्यात्म के, एटले मारा चितमां पण तेज प्रमाणे छे, शुं छे? ते बतावे छे, बन्धथी मोक्ष ते बन्ध प्रमोक्ष छे, ते अध्यात्ममांज छे, अने अध्यात्म ते ब्रह्मचर्य छे, ब्रह्मचर्यवाळानो मोक्ष छे. वळी इत्थ आ परिग्रह राखवाथी विरत तेछे, प्र० - कोण छे ? उ०- जेने गृह नथी ते अणगार छे, ते साधु दीर्घरात्र (आखी जींदगी) सुधी परिग्रहना अभाववाळी बनीने भूख तरस विगेरेनां आवेलां कष्टोने सहन करे, बळी गुरुउपदेश करे छे, 'पमते ' विषयो विगेरे प्रमादोथी धर्मयी त्रिमुख थपला गृहस्थो तथा वेषधारीओने तुं जो, देखीने शुं कर ? ते कहे छे:- अप्रमत बनीने संयम - अनुष्ठानमां यत्न करे. बळी, 'एयम्' आ पूर्वे को संयम - अनुष्ठान मुनिनुं सर्व स्वमौन छे. ते सर्वज्ञनुं कहेलुं छे, ते सारीरीते पाळनुं आ प्रमाणे हुं हुं हुं. S For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥५७७॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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