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आचा०
॥५६४॥
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एनाथी उलदुं अप्रशस्त चरण ते ग्रहस्थ भने अन्यदर्शीनीओनुं संसारी वर्तन छे. तेथी आ प्रमाणे द्रव्य विगेरे चार प्रकार तुं चरण बतावीने वर्तमानमां उपयोगीपणे साधुनो प्रशस्त भाव चार प्रश्न द्वाराए नियुक्तिकार बतावे छे.
लोगे चउविहंमी, समणस्स चउविहो कहं चारो ? होई विई अहिगारो, विसेसओ खित्तकालेसुं ॥२४८॥ चार प्रकारना द्रव्य क्षेत्र काळ अने भावरूप लोकमां श्रम सहेनार ते श्रमण (यति) नो केवीरीतनो द्रव्यादि चार प्रकारनो चार छे ? उत्तर - अहीं धृति (धैर्यता ) नो अधिकार छे, एटले चार प्रकारे धैर्यता राखवी.
-:- चार प्रकारनी धैर्यता -:
द्रव्ययी धैर्यता — एटले अभ्स ( रस रहित) तथा विरस ते तुच्छ तथा लुरु विगेरे भोजन मळे, तो पण तेमां धैर्यता राखवी. क्षेत्र धैर्यता -- एटले कुतीर्थिके लोकोने पोताना रागी चनाच्या होय, अथवा कुदरतीज लोको अभद्रक होय (तो साधुनुं बहु मान न करे तेथी) साधुए उद्वेग न करवो,
काळ धैर्यता ---ते दुकाळ विगेरे मुश्केलीना वखतमां जेतुं भोजन विगेरे मळे, तेमां संतोष राखवो.
भाव धैर्यता - ते कोइ आक्रोश करे हांसी करे अपमान करे, तोपण क्रोधायमान न यनुं, पण विशेष करीने तो क्षेत्रकाळमां testj होय त्यां वधारे धैर्यता राखवानी छे, कारण के प्राये तेना निमित्तेज द्रव्य अने भात्रमां अधैर्यता थाय छे.
हवे फरीथी द्रव्यादिकना भांगायी साधुनो चार कहे छे.
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सूत्रम
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