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आचा० ॥५४॥
असक्स
महा मोहथी मलिन अंतःकरणवाळो मृद बने. मा-पछी ते केवो थाय ? उ.-अवोच्छिन विगेरे-एक सरखां सैकडो जन्ममरण थापनार प, आठ प्रकारना कर्मरुप बंधन तेने मळे छे; बळी 'अणमि.' जेणे संसारना संयोगरूप धन धान्य सोनु, पुत्र स्त्री, विगेरेनो |
सूत्रम् BI मोह अथवा असंयमनो संयोग छोड्यो नवी; ते 'अनभिकांत संयोगी' छे, तेवा कुसाधुने इन्द्रियोने अनुकुल विषयलालसाना अंधारामां'
अथवा मोहरुप अंधकारमा पवर्तेला पोतार्नु खलं हित अथवा मोक्षउपायो तेणे न जाणवाथी तीर्थकरनी आज्ञा (उपदेशनो) लाभ 3/॥५४३॥ तेने यवानो नथी एबुं हुं कहुं छं अथवा तेने आता एटले सम्यक्त्वनो लाभ थवानो नथी. (भविष्यमां) पण धर्म मळवो दुर्लभ छे. कारण के, सूत्रमा नास्तिक शब्द छे ते अव्यय प्रणे काळ आश्रयी छे.
जस्स नत्थि पुरा पच्छा मज्झे तस्स कुओ सिया? से हु पन्नाणमंते बुझे आरंभोवरए, संममेयंति पासह, जेण बंधं वहं घोरं परियावं च दारुणं पलिळिंदिय बाहिरगं च सोयं, निकंमदंसी इह मच्चिएहि, कम्माणं सफलं दट्टण तओ निजाइ वेयवी (सू० १३९)
जे कोइपण चाळमूर्ख साघु कर्मादान स्रोतमां गृद्ध थयेल छे तथा एकसरखां जन्ममरण बांध्या छे. तथा संसारमोह छोड्यो नथी; अज्ञानअंधकारमा मूल्यो छे, तेने पूर्वजन्ममां धर्मप्राप्ति नहोती; भविष्यमां पण थवानी नथी; तेने मध्यजन्ममां क्याथी थवानी छे ? अर्थात् जेणे सम्यक्त्व पूर्व प्राप्त करेल द्दशे; तेनेज वर्तमानमा मळे छे. कारण के जेणे सम्यक्त्व पूर्वे मेळवी तेनो स्वाद लीधो तेने पाछो मिथ्यात्वनो उदय यतां अपार्ध पुद्गल परावर्तनना काळे पण थशे; पण सम्यक्त्व वमेलाने फरी सम्पत्वनो असं-ला
मकर
RASS
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