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आचा०
॥ ५२९ ॥
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जल्लो सुक्कोय दो छूढा, गोलया महिश्रामया । दोत्रि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो तत्थ (सोऽस्थ) लग्गइ ॥ एवं लग्गंति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गंति, जहा से सुक्कगोलए || २३३ ॥
जे भीनो तथा सूको गोळो छे ते बन्ने माटीना छे, भींत उपर फेंकतां जे भीनो छे, ते त्यां भींत उपर लागशे ए प्रमाणे दुष्ट बुद्धिवाळा जेओ कामनी लालसावाळा छे, तेओज संसारवासनामां गृद्ध यशे. पण जेओ विरक्त ले, तेओ सुका गोळा माफक संसा| वासनामां गृद्ध नहिं थाय. तेनो भावार्थ कहे छे. जेओ अंग प्रत्यंग जोवाथी विमुख छे, तेओ त्रीभुं मोडं जोता नथी, अने जेओ अंग प्रत्यंग जोवामां उत्सुक छे, तेओ काम वासनाथी गृद्ध धयेला भीना गोळा माफक खीनुं मोढुं जुए छे, अने तेज जीवो लालसावाळा होवाथी संसारपंक अथवा कर्मकादव तेमने लागे छे, पण जेओ क्षमा विगेरे गुणोथी युक्त संसारसुखथी विमुख छे. काष्ठ ( निस्पृह) सुनिओ छे तेओ सुका गोळा माफक होवाथी क्यांय पण लागता नथी. सम्यक्त्व अध्ययनमां वीजा उद्देशानी निर्युक्ति तथा बीजो उदेशो समाप्त थयो.
-:- हवे बीजो उदेशो कहे छे :
बीजा साथे तेनो आ प्रमाणे संबंध छे, गया उद्देशामां सम्यक्त्वमां साधुने स्थिर करवा वीजा मतवाळानी भूलो बतावी पण ते सम्यक्तव साधे रहेलुं ज्ञान छे, तथा ते ज्ञाननी सफलता विरति (वैराग्य) छे, पण आ त्रणे होय छतां पूर्वे करेला चीकणां कर्मनो बंध निरवद्य तप कर्या विना क्षय न थाय. माटे हवे ते तपनुं वर्णन करे छे. आ संबंधी आवेला त्रीजा उद्देशानुं आ पहेलुं सूत्र के.
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सूत्रम् ॥५२९॥