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प्रश्न-सूत्रमा वर्तन क्रियाने नथी लीधु छनां शा माटे प्रक्षेप करो छो ? आचा०४
उत्तर-ज्यां कोई विशेष क्रिया लीधी न होय त्यां पण सामान्य क्रिया होय छे, तेथी पहेलांनी क्रियाने लइने वाकय समाप्त सूत्रम्
कराय छे, ए प्रमाणे बीजे पण ज्यां साक्षात् क्रिया न लीधी होय त्यां पण पूर्वनी सामान्य लेवी अथवा मूळ ते आघ (प्रथम) ॥२८॥
IP॥२८॥ अथवा प्रधान छे, अने स्थान ते कारण छे, तेमां मूळ अने कारण ए बेनो कर्मधारय समास करीए; तो एवो अर्थ थाय के जे| शब्दादि गुण छे, तेज मूळ स्थान संसार- प्रधान कारण छे बाकी वर्षा पूर्व माफक ले. ते गुण अने मूळ स्थानन नियम्य (दोर | ववा योग्य) तथा नियामकभाव बतावतां तेना तेना स्वीकारेला विषय कषाय विगेरेनां बीज अने अंकुरना न्यायवडे परस्पर कार्यकारणभाव मूत्रवडेज बतावे छे, एटले संसारन मूळ अथवा कर्मचें मूळ अथवा कदायोनुं स्थान आश्रय ते, शब्दादि गुण पण आज छे, अथवा कषाय मूळ शब्ददिकनुं जे स्थान छे, ते कर्म संसार छे, अने ते ते स्वभावनी प्राप्तिथी गुण पण तेज छे, अथवा शब्दादिक कषाय परिणाम मूळ जे संसार अथवा कर्मनुं जे स्थान मोहनीयकर्म छे, ते शब्दादि कपायथी परिणामवाळो आत्मा छे, तेना ४ गुणनी प्राप्तिथी गुण पण तेज छे, अथवा संसारकषाय मूळ जे आत्मा, तेनुं स्थान विषयोनो अभिलाष ते पण शब्दादि विषयपणाथी
गुणरुपज छे, अने अहींया विषयना लेवाथी विषयीना पण आक्षेपथी, अने सुचन मात्र करवाथी सूत्रनुपण एम जाणवू के, जे जीव - गुणमां, अथवा गुणोमां वर्ते छे, ते मूळ स्थानमा अथवा मूळ स्थानोमां वर्ते छे, अने जे मूळस्थान विगेरेमा वर्ते छे, तेज गुणोमां
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