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सुत्रम्
॥२७॥
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गतिनोज हेतु छे, अने ते वे समयनो छे एटले पहेला समयमां बांधे अने बीजा समयमा भोगवे अने ते कर्मनी अपेक्षाए त्रीजा स-12 आचा० मयमां अकर्मता थाय छे.
___ प्रश्न-कबी रीते ? उत्तर-जे प्रकृतिथी सातावेदनीय छे, ते कषाय विनानुं छे, अने तेथी स्थितिनो अभाब छे, तेथी बंधा-13 बवानी साथे खरी पडे छे, अनुभावथी अनुत्तर विमानमा उत्पन्न थएल देवता अतिशय मुखने भोगवे, ते प्रदेशथी स्थल लख्खा धोळा विगेरे बहु प्रदेशवाला छे. कधू छे के
अप्पं बायरमउयं बहुं च लुक्खं च सूक्किलं चेव । मंदं महत्वतंतिय साताबहुलं च तं कम्मं ॥१॥ & स्थितिथी अल्प छे, कारण के त्यां स्थितिनो अभाव छे, परिणामथी बादर छे, अने अनुभावथी मृदु ( कोमळ ) अनुभाव छे,
प्रदेशथी बहु छे, अने स्पर्शथी लुख्खं छे, वर्णथी शुक्ल (धोळु) छे लेपथी मंद छे जेमके करकरी भूकीनी मुठी भरीने पालीस 18 करेली भीत उपर नाखतां जेम अल्प (नही जेवो) लेप थाय, तेम महाव्यये करेलं ते एक समयमांज बधुं दूर थइ जाय छे, साता
वेदनीना घणापणाथी अनुत्तर विमानना देवतार्नु मुखर्नु घणापणुं छे ( मुख भोगववा छतां तेमने अल्पमोहथी नवां अशुभ कर्म -4 धातां नयी) इर्यापथिक कवू.
हवे आधा कर्म कहे छे-जे निमित्तने आश्रयी पूर्वे कहेला आठे प्रकारना कर्म बन्धाय; ते आधाकर्म छे, अने ते शब्द, स्पर्श, रस, रुप, अने गंध विगेरे छे, जेमके शब्द विगेरे काम गुणना विषयनो रसीयो सुखनी इच्छाथी मोहमा जेनी बुद्धि इणाइ गइ छे,
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