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सुत्रम्
18/॥२७॥
निदा पंचक तथा असाता वेदनिय ए छर्नु एक सागरोपमना सातमा भागना त्रण लेवा १४:) ते सागरोपमथी पल्योपमनो ट्र आचा० असंख्येय भाग ओछो लेवो.
___ साता वेदनीयनो काळ १२ मुहुर्त छे, अने अंतर्मुहर्तनी अबाधा छे. तथा मिथ्यात्वनी सागरोपममा पल्योपमथी असंख्येय 2 ॥२७॥ 3/ भाग ओछो लेवो.
पहेला १२ कषाय ते सागरोपमना : लेवा अने पल्योपमथी असंख्येय भाग ओछो लेवो. संज्वलन क्रोधनी बे मास छे. माननी एक मास, मायानी अडधोमास; पुंवेदनी आठ वर्ष स्थिति छे. आबधामां अंतर्मुहूर्त्तनी अबाधाछे.
बाकीना कवाय मनुष्य तिर्यंच गति पन्चेन्द्रिय जाति औदारिक तथा तेनां अंगोपांग तथा तैजस कार्मण छ संस्थान तथा संह| नन वर्ण, गंध, रस. स्पर्श, तिर्यच, मनुष्य, अनुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, पराघात, उच्छवास आतप उद्योत, प्रशस्त, अप्रशस्त + विहायोगति, यशः कीर्ति. छोडीने त्रस आदि २० प्रकृति निर्माण नीचगोत्र देवगति अनुपूर्वी. मळीने २ तथा नरकगति अनुपूर्वी.२
वैक्रिय शरीर तथा अंगोपांग एम ६८ उत्तर प्रकृतिनी स्थिति : सागरोपम अने पल्योपमनो असंख्येय भाग ओछो छे. तेमां अंतर्मुह8/नी अबाधा छे. वैक्रिय षट्कनी हजार सागरोपमना: भाग लेवा. तेमां पल्योपमनो असंख्येय भाग ओछो छे. तेमां अंतर्मुहूर्त्तनी द अबाधा छे. आहारक शरीर तेनुं अंगोपांग तथा तीर्थकर नामनी सागरोपम कोटीकोटी स्थिति छे. भिन्न अन्तर्मुहूर्त अबाधा छे.
प्रश्न-उत्कृष्ट पण एटलीज स्थिति कही त्यारे जघन्य साथे तो शुं भेद छे ?
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