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सूत्रम्
॥२५१॥
दुविहो अ होइ मोहो दंसणमोहो चरित्तमोहो अ । कामा चरित्तमोहो तेणऽहिगारो इहं सुत्ते ॥ १७९ ॥ आचा० दर्शन मोहनीय अने चारित्र मोहनीय एम के भेदे का. अने बंधना हेतुन पण बे प्रकार पणुं छे ते बतावे छे.
२ अर्हत् (जिनेश्वर) सिद्ध, चैत्य, तप. श्रुतगुरु, साधु, संघना प्रत्यनीक (जिनेश्वरी संघ सुधी जे पदो छे, जेमां गुण अने गुणी ॥२५१॥ ए बने आवे छे तेमना शत्र) पणे जे वर्ने ते दर्शनमोहनीय कर्म बांधे छे. अने जेना बडे जीव अनंत संसाररूप समुद्रना मध्यमां है पडे छे तथा तीव्र कषाय बहुराग द्वेषरूप मोहथी घेराएलो बनी देश विरति अने सर्व विरतिने हणनारो चारित्रमोहनीयकर्म बांधे छे.
तेमां मिथ्यात्व, सम्यग् मिथ्यात्त्व (मिश्र) अने सम्यक्त्व एम त्रण भेदे दर्शन मोहनीय-कर्म छे, तथा सोळ प्रकारना कषाय छे. 8 नव नोकपाय छे. एम पञ्चीस भेदे चारित्रमोहनीय छे. (पहेला कर्मग्रंथमा मोहनीय कर्म जुओ.) तेमां काम ए शब्द विगेरे पांच है विषयो चारित्रमोह जाणवा; तेना बडे अहीं मूत्रमा अधिकार छे, कारण के, चालु विषयमां कषायोगे स्थान छे; अने ते शब्दादि
पांच गुणरूप छे. अने चारित्रभोहनीय पूर्वे कहेली उत्तर प्रकृति जे स्त्रीवेद पुरुषवेद नपुंसकवेद तथा हास्य रतिलोभी आश्रीत 8 काम आश्रयवाला कषायो संसारनुं मूळ छे अने कर्ममा प्रधान कारण ए छे ते बतावे हे.
संसारस्स उ मूलं, कम्मं तस्सवि हंति य कसाया ॥ संसार ते नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव एम चार प्रकारे गतिरूप संसारनुं भ्रमण छे. तेनुं मूळ कारण आठ प्रकार- कर्म छे. ते 8 कर्मनुं पण मूळ कारण कषायो छे. ते क्रोध विगेरे संसारनै निमित्त छे, अने ते प्रतिपादित शब्द विगेरे स्थानोनुं प्रचुरस्थानपणुं ४
बताववा फरीथी स्थान विशेष अडधी गाथा वडे कहे छे.
ॐRRECASISAGA
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