________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा०
॥४१०॥
www.kobatirth.org
| पदार्थ जाणनारो सम्यक् दृष्टि जिनवचन माननारो गीतार्थ साधु छे ते मोक्ष सीवाय बीजा मार्गमां रमतो नथी. हेतु अने हेतुवाळा - भाववडे सूत्रने जोडवा कहे छे के जे भगवानना उपदेशथी अन्य स्थानमां रमणता न करनारो ते अनन्यदर्शी छे अने जे अनन्यदर्शी छे ते बीजे रमे नही कां छे के
“शिवमस्तु कुशास्त्राणां वैशेषिकषष्टि तंत्र बौद्धानाम् । येषां दुर्विहितत्वाद्भगवत्यनुरज्यते चेतः ॥१॥” कुशाखो जे, “वैशेषिकषष्टितंत्र" तथा बौद्धनां रचेलां छे, तेमनुं पण भलुं थाओ; कारण के, तेमनामां विसंवाद जोड़ने जिनेविरना वचनमां अमारुं मन रंजित थाय छे.
आ प्रमाणे सम्यक्त्वनुं स्वरूप कहेल छे, ते कहेनार रागद्वेष दूर करनारो थाय छे ते बतावे छे.
जहा पुण्णस्स. विगेरे.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तीर्थकर, गणधर, आचार्य विगेरे जे प्रकारे इन्द्र चक्रवर्त्ती मांडलीक राजा विगेरे पुन्यवान - जीवने उपदेश करे छे. तेज प्रमाणे कठीयारा विगेरे तुच्छ जीवोने पण उपदेश करे छे. (बन्नेमां तेमनो समभाव छे,) अथवा पूर्ण ते जाति, कुळ, रूप, विगेरेथी पुण्यवान छे, अने नीच जाति कुरुपवाळो ते तुच्छ छे, अथवा, विज्ञानवाळो पूर्ण तथा अन्य सामान्य बुद्धिवाळो तुच्छ छे, ते दरेकने उत्तम पुरुषो समानभावे उपदेश करे छे. कधुं छे केः
“ज्ञानेश्वर्यधनोपेतो, जात्यन्वय बलान्वितः । तेजस्वी मतिमान् ख्यातः पूर्णस्तुच्छा विपर्ययात् ॥१॥"
For Private and Personal Use Only
सूत्रम्
॥४१०॥