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आचा०
॥३९६॥
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दुःखनाज हेतुओ छे. तेयुं तमे जाणो तेथी हुं कहुं छु, मारो उपदेश चित्तमां राखवा माटे कानेथी
सांभळो अने खोटी वासनाने छोडी दो.
शंका- अही कामवासनानो निग्रह बताव्यो, ते बीजा उपदेशथी पण कार्य सिद्धि थात तेथी आचार्य कहे छे. "ते इच्छे" काम चिकित्सामां पण पंडित अभिमानी पोते तेवा वचन बोलतो अथवा व्याधिनी चिकित्सानो उपदेश करतो अन्य दर्शनीसाधु जीवना उपमर्दनमां वर्ते छे. एटले जे भविष्धना कडवा विपाकने भूले छे, ते बीजाने संसार भोगबवाना (कोकशास्त्र) ग्रंथनो उपदेश करे छे, जेना वडे अज्ञानी जीवो विषय सुख लेवा शरीर शक्ति वधारवा अनेक पाप करे छे, तेनुं मूळ कारण तेवा उपदेशने | कहेवाथी बीजा जीवोने लाकडी विगेरेथी मारनारो तथा शूळ विगेरेथी कान विगेरेनो भेदनारो तथा गांठ छोडवी, विगेरेथी धन चोरनारो, तथा लंट के खातर पाडीने धन लेनारो तथा जीव नारो बने छे. कारण के कामचिकित्सा के शरीरनी पुष्टि के रोग निवारण तत्व दृष्टिथी विमुख पुरुषोने जीवहिंसा सिवाय थतुं नथी. वली केटलाक पंडित मानी पुरुषो एम गर्व करे छे के तेणे कामचिकित्सा विगेरे न करी पण हुं तो करीशज ! एम मानीने पोते हवा विगेरेनी क्रिया करे छे, तेथी कर्मबन्ध थाय छे, जे कुवासना अथवा जीव हिंसाना औषधोनां शास्त्र बनावे छे ते परिणामे दुर्गतिने आपनार शास्त्र होवाथी ते अकार्य छे.
वली कहे छे के, जे पोते चिकित्सा करे छे. ते करनार अने करावनार बन्ने पाप क्रियाओना भागी छे. तेथी तेवी दुर्गतिमां जनारा अज्ञानी जीवनी संगत पण न करवी, कारण के तेथी कर्मबंध थाय छे, अने जीवहिंसाथी औषध करावे, तेनी पण सोबत न करवी.
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सूत्रम् ॥३९६ ॥