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सूत्रम्
આ રૂ૮
जे बझे पडिमौयइ जहा अंतो तहा बाहिं जहा बाहिं तहा अंतो, अंतो अंतो पूइ आचा०
देहतराणि पासइ, पुढोवि सवंताई पंडिए पडिलेहाए ॥ (सू० ९३)
जेने आ लोक अने परलोकना परिणामनां दुःख जोवामां (विचारवामां) विशाळ दृष्टि (ज्ञान) छे. ते विशाळ चक्षुवाळो बने ॥३८८॥
छे. ते उपर कहेला भोगोने घणा अनर्थोनुं मूळ समजीने तेने छोडीने "शम सुख" (वीतराग दशा) ने अनुभवे छे. तथा संसारी | लोको जे विषय रसमां पडतां अतिशय दुःखी थएला छे. (एटले कुमार्गे जतां गुप्त इन्द्रि सडतां विसफोटकनो रोग थतां के क्षयथी मरतां जोइने) पोते तेवा कुमार्गने इच्छतो नथी. तेथी प्रशम सुखने अनेक प्रकारे जुए छे. तेथी ते लोकविदर्शी छे. अथवा लोक
एटले उर्द्ध अधः तथा तिर्थक् (स्वर्ग पातळ अने मृत्यु) ए त्रण लोकमां चार गतिमां थतां दुःखो मुखोना कारणोने तथा त्यां भोगवाता P आयुष्य विगेरेने जुए छे. ते वतावे छे.
लोकना अधो भागमां शुंछे ते जाणे छे. एटले धर्म अधर्म अस्तिकायथी व्याप्त आकाश खंडनो नीचलो भाग जाणे छे. तेनो टूसार आ छे के जीवो जे कर्मों वडे त्यां उत्पन्न थाय छे. तथा त्यां सुख दुःखनो विपाक केवो छे. तेने जाणे छे. (नारकीना जीवोने है यतुं दुःख पोते जाणे छे. तथा भुवनपति व्यंतरना देवोन सुख पण जाणे छे.)
तेज प्रमाणे उर्द्ध तथा तिर्यक् लोकने पण जाणे छे. (उर्द्ध लोकमां वैमानीक देव तथा मोक्षनुं मुख छे. ते जाणे छे. तथा ४ तिर्यक् लोकमां ज्योतिषना देवतार्नु सुख तथा धर्मी मनुष्यनुं सुख तथा पापी तथा तियेच प्राणीनुं दुःख जाणे छे.) अथवा लोक
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