SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥३८१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य उत्तर- वो दोष नधी, कारण के धर्मउपकरणमां साधुओने आमारुं छे, एवो परिग्रहनो आग्रह नथी. एज शास्त्रमां कहां छेके, "अवि अपणोऽवि देहमि, नायरंति ममाइॐ" जे मुनिओने पोताना शरीरमां पण ममत्व नथी, ते बीजामां ममत्व केवी रीते करे ? (न करे.) जे अहींआं कर्मबंधना माटे लेवाय तेज परिग्रह छे, पण जेनावी कर्मनी निर्जरा थाय (कर्म ओछां थाय) ते परिगृहज नथी, (साधुनो लेप करवाथी पूर्वना तेल विगेरेना लेपमां बधारो थतो नथी, पण तेलने खाइ वस्त्र साफ बनावे छे. तेवी रीते जोइतुं उपकरण संयमनी रक्षा करे छे.) कहां छे के अन्ना णं पासए परिहरिजा, एस मग्गे आयरिएहिं पवेइए, जहित्थ कुसले नोवलिंपिज्जासि तिबेमि ॥ आ प्रकारे देखतो बनीने (विचार पूर्वक) परिग्रह छोडे जेम गृहस्थो तत्व जाण्या विना आ लोकना मुखना माटे परिग्रह - घरवा जुए छे, पण साधुओ तेम करता नथी, तेनो आशय आ छे. आचार्यने आश्रयी आ वधारानुं उपकरण छे पण मारुं नथी, मां रागद्वेषमूळ छे; ते परिग्रहनां आग्रहनो योग अर्ही निषेधवो परंतु धर्म उपकरणनो निषेध न करवो, तेना बिना संसार - मुद्रथी पार जवाय नहीं. कछु ले के साध्यं यथा कथञ्चित् स्वल्पं कार्य महञ्च न तथेति । प्लवनमृते न हि शक्यं, पारं गन्तुं समुद्रस्य ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥३८१ ॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy