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आचा०
॥३७८॥
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अवग्रह कहे छे
जेनी आज्ञा लड्ने क्षेत्रमां फराय; ते अवग्रह छे. ते पांच प्रकारे छे. (१) इंद्रनो अवग्रह (२) राजानो अवग्रह (३) गामना मा| लीक पटेल विगेरेनो अवग्रह (४) घरवालानो अवग्रह ( ५ ) प्रथम उतरेला साधुनो अवग्रह आ प्रमाणे अवग्रहनी बधी प्रतिमाओ सूचवी; तेथी तेनुं पण समर्थन कर्यु, अने अवग्रहना कल्पतुं वर्णन आ सूत्रमां कहे छे
कटासण कहे छे-
कट शब्दथी संथारो जाणवो. अने आसन शब्दथी आसंदक विगेरे बेसवानां आसन जाणवां, जेनामां बेसाय ते आसन छे. अने तेज शय्या छे. तेथी आसन शब्दथी शय्या पण जाणवी, तेनुं स्वरूप कं. उपर बतावेल साधुने उपयोगी सर्व वस्तु वस्त्र वि| गेरे तथा आहार विगेरे आरंभ करनारा ग्रहस्थ पासेथी मळता जाणवा अने तेमां आमगंध ( दोषित) छोडीने निर्दोष जेम मले तेम वर्ते । प्रश्न--आवीरीते गृहस्थोने त्यां जतां जे मले, ते ले के तेनी कंइ हद छे ? ते बतावे छे.
लद्धे आहारे अणगारो मायं जाणिजा, से जहेयं भगवया पवेईये लाभुत्ति न मजिज्जा अ
लाभुति न सोइजा, बहुपि लहुं न निहे, परिग्गहाओं अप्पाणं अवसक्किजा (सू० ९०)
साधुने आहार मलतां विचारे के हुं लइश, तो पछी मारे खातर नवो आरंभ गृहस्थने करवो पडशे के नही तेतुं विचारीने ले, के जेथी नवो आरंभ न करवो पडे; तेवीजरीते वस्त्र औषध विगेरेमां पण जाणी लेवुं; तथा नवो आरंभ न करवो पढे; पण
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सूत्रम्
॥३७८॥