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आचा० ॥२३२॥
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नाम गुण, स्थापना गुण, द्रव्य. गुण, क्षेत्र. गुण, काळ. गुण. फळ गुण, प्रर्यब गुण, गणना गुण, करण गुण, अभ्यास गुण, गुण-अगुण, अगुण गुण, भव गुण, शील गुण, भात्र गुण एम पंदर भेद थया ते कांणमां कं. हवे सूत्र अनुगम वढे सूत्र उच्चारतां निक्षेप निर्बुक्तिना अनुगम वडे तेना अवयवनो निक्षेपो करतां उपोद्घात निर्युक्तिनो अवसर छे-ते उद्देशा विगेरेना द्वारनी वे गाथा वडे जाणवा. हवे सूत्रने स्पर्श करनारा निर्मुक्तिनो अवसर छे, ते नाम स्थापना सुगमने छोडीने द्रव्यादिकने कहे छे. दवगुणो दव्वं चिय गुणाण जं तंमि संभवो होइ । सञ्चित्ते अच्चित्ते, मोसंमि य होइ दव्वंमि ॥ १७० ॥
द्रव्यगुण ते द्रव्य पोतेज छे. प्रश्न =शा माटे ? उत्तर—गुणोनो गुणपदार्थमां तेजरूपे संभव थाय छे.
शंका- द्रव्य अने गुणमां लक्षण अने विधानना भेदथी भेद छे. तेज कहे छे. द्रव्य लक्षण गुणपर्यायवाळं द्रव्य छे. विधान पण धर्म, अधर्म, आकाश, जीव, पुद्गल विगेरे छे. द्रव्यनी व्याख्या कही; अने गुणनी व्याख्या कहे छे. द्रव्यने आश्रयी साथ रहेनारा: गुणो छे, अने तेनुं विधान ज्ञान, इच्छा, द्वेष, रूप, रस, गंध, अने स्पर्श विगेरे छे, ते पोतानामां रहेला भेदे करीने जुदा छे. आचार्यनुं समाधान - ए दोष नथी; कारणके, द्रव्यो सचित्त, अचित्त अने मिश्र भेदथी जुदां छे, तेमां गुण छे ते, तेजस्वरुपे रह्यो छे, तेमां अचित्त द्रव्य वे प्रकारे छे, अरुपी अने रुपी तेमां अरुपी द्रव्यमां धर्म, अधर्म, अने आकाश. एम त्रण भेदे करीने जुदा छे. लक्षणो अनुक्रमे गति स्थिति अने अवगाह आपवानुं छे अने एनो गुण पण अमूर्त छे अने अगुरुलघु पर्याय -लक्षणवालुं छे तेमां त्रणेनुं अमूर्तपथुंचे ते पोताना रुपभेद वडे व्यवस्थावालं नथी. ( अमूर्तपणामां भेद नथी ) तेम अगुरुलघु पर्याय पण छे ते तेना पर्याय
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सूत्रम्
॥२३२॥