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आचा०
सूत्रम्
॥३४७॥
॥३४७॥
एटले मूत्रमा बताव्या प्रमाणे बधा जीवोने पोतार्नु आयुष्य प्रिय छे. शंका-सिद्धने आयुष्य प्रिय नथी, तेथी तमारा कहेवामां दोष आवशे.
उत्तर-एटला माटेज अमे मुख्य शब्द जीवने न वापरतां प्राण शब्द वापर्यो छे. अने तेथी पाण धारण करनार संसारी जीवज लेवा. तेथी तमारो वांधो नकामो छे.
“सव्वे पाणा पियायया" आ पाठ छे. एटले आयुष्यने बदले आयत शब्द छे अने तेनो अर्थ आत्मा छे. कारण के ते अनादि अनंत छे. अने बधाने पोतानो आत्मा वहालो छे. अने मुखनी वांच्छादुःखनो नाश करवानी अभिलाषा छे. कयु छे के
सुहसाया दुक्खपडिकूला. आनंदरूप-सुख छे, तेनो स्वाद करवो ते सुख भोगववानी इच्छावाला जाणवा. अने असाता ते दुःख. तेना द्वेषी जाणवा; & तथा पोतानो घात करे; तो, पोते अप्रिय माने छे, तथा जीवितने प्रिय माने छे, एटले दीर्घ आयुष्य वांच्छे छे, अने ते पण असंयम जीवित वांच्छे छे, एटले दुःखमा पीडाइने पण, अंतदशामां पण जीववाने इच्छे छे कयुं छे के:', रमइ विहवी विसेसे ठितिमित्तं थेव वित्थरो महई। मग्गइ सरीर महणो, रोगीजीए च्चिय कयत्थो॥१॥
वैभववाळो विशेष वैभवमा रमे छे. योडावाळो पण रहेवाने इच्छे छे. निर्धन पण पोतनां शरीरने संभाळे छे. रोगी पण जीव
25345-ॐASHI
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